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हबक्कूक को परमेश्वर का उत्तर
1 मैं अपने पहरे पर खड़ा रहूँगा, और गुम्मट पर चढ़कर ठहरा रहूँगा, और ताकता रहूँगा कि मुझसे वह क्या कहेगा? मैं अपने दिए हुए उलाहने के विषय में क्या उत्तर दूँ?
2 फिर यहोवा ने मुझसे कहा, “दर्शन की बातें लिख दे; वरन् पटियाओं पर साफ-साफ लिख दे कि दौड़ते हुए भी वे सहज से पढ़ी जाएँ। 3 क्योंकि इस दर्शन की बात नियत समय में पूरी होनेवाली है* 2:3 इस दर्शन की बात नियत समय में पूरी होनेवाली है: वर्तमान में तो नहीं परन्तु समय के अन्तराल में विकसित होकर उस समय होगी जो केवल परमेश्वर ही जानता है।, वरन् इसके पूरे होने का समय वेग से आता है; इसमें धोखा न होगा। चाहे इसमें विलम्ब भी हो, तो भी उसकी बाट जोहते रहना; क्योंकि वह निश्चय पूरी होगी और उसमें देर न होगी। 4 देख, उसका मन फूला हुआ है, उसका मन सीधा नहीं है; परन्तु धर्मी अपने विश्वास के द्वारा जीवित रहेगा। (इब्रा. 10:37, 38, 2 पत. 3:9, रोम. 1:17, गला. 3:11) 5 दाखमधु से धोखा होता है; अहंकारी पुरुष घर में नहीं रहता, और उसकी लालसा अधोलोक के समान पूरी नहीं होती, और मृत्यु के समान उसका पेट नहीं भरता। वह सब जातियों को अपने पास खींच लेता, और सब देशों के लोगों को अपने पास इकट्ठे कर रखता है।”
दुष्ट का विनाश अवश्य
6 क्या वे सब उसका दृष्टान्त चलाकर, और उस पर ताना मारकर न कहेंगे “हाय उस पर जो पराया धन छीन छीनकर धनवान हो जाता है? कब तक? हाय उस पर जो अपना घर बन्धक की वस्तुओं से भर लेता है!” 7 जो तुझ से कर्ज लेते हैं, क्या वे लोग अचानक न उठेंगे? और क्या वे न जागेंगे जो तुझको संकट में डालेंगे? 8 और क्या तू उनसे लूटा न जाएगा? तूने बहुत सी जातियों को लूट लिया है, इसलिए सब बचे हुए लोग तुझे भी लूट लेंगे। इसका कारण मनुष्यों की हत्या है, और वह उपद्रव भी जो तूने इस देश और राजधानी और इसके सब रहनेवालों पर किया है।
9 हाय उस पर, जो अपने घर के लिये अन्याय के लाभ का लोभी है ताकि वह अपना घोंसला ऊँचे स्थान में बनाकर विपत्ति से बचे। 10 तूने बहुत सी जातियों को काटकर अपने घर के लिये लज्जा की युक्ति बाँधी, और अपने ही प्राण का दोषी ठहरा है। 11 क्योंकि घर की दीवार का पत्थर दुहाई देता है, और उसके छत की कड़ी उनके स्वर में स्वर मिलाकर उत्तर देती हैं।
12 हाय उस पर जो हत्या करके नगर को बनाता, और कुटिलता करके शहर को दृढ़ करता है। 13 देखो, क्या सेनाओं के यहोवा की ओर से यह नहीं होता कि देश-देश के लोग परिश्रम तो करते हैं परन्तु वे आग का कौर होते हैं; और राज्य-राज्य के लोगों का परिश्रम व्यर्थ ही ठहरता है? 14 क्योंकि पृथ्वी यहोवा की महिमा के ज्ञान से ऐसी भर जाएगी† 2:14 पृथ्वी यहोवा की महिमा के ज्ञान से ऐसी भर जाएगी: क्योंकि प्रभु की आत्मा से पृथ्वी ऐसी भर गई और भरने के कारण प्रभु की महिमा का ज्ञान व्याप्त हो गया जिससे अज्ञानी और अशिक्षित मनुष्य बुद्धिमान एवं बोलने में प्रवीण हो गया। जैसे समुद्र जल से भर जाता है।
15 हाय उस पर, जो अपने पड़ोसी को मदिरा पिलाता, और उसमें विष मिलाकर उसको मतवाला कर देता है कि उसको नंगा देखे। 16 तू महिमा के बदले अपमान ही से भर गया है। तू भी पी, और अपने को खतनाहीन प्रगट कर! जो कटोरा यहोवा के दाहिने हाथ में रहता है, वह घूमकर तेरी ओर भी जाएगा, और तेरा वैभव तेरी छाँट से अशुद्ध हो जाएगा। 17 क्योंकि लबानोन में तेरा किया हुआ उपद्रव और वहाँ के जंगली पशुओं पर तेरा किया हुआ उत्पात, जिनसे वे भयभीत हो गए थे, तुझी पर आ पड़ेंगे। यह मनुष्यों की हत्या और उस उपद्रव के कारण होगा, जो इस देश और राजधानी और इसके सब रहनेवालों पर किया गया है।
18 खुदी हुई मूरत में क्या लाभ देखकर‡ 2:18 खुदी हुई मूरत में क्या लाभ देखकर: यह मूर्तिपूजा की विशेष मूर्खता थी। उसकी रचना हस्तकार से भी कम है। यह मूर्तिपूजा का एक भ्रष्ट विचार है कि कलाकार अपनी ही रची हुई वस्तु में आस्था रखे। बनानेवाले ने उसे खोदा है? फिर झूठ सिखानेवाली और ढली हुई मूरत में क्या लाभ देखकर ढालनेवाले ने उस पर इतना भरोसा रखा है कि न बोलनेवाली और निकम्मी मूरत बनाए? 19 हाय उस पर जो काठ से कहता है, जाग, या अबोल पत्थर से, उठ! क्या वह सिखाएगा? देखो, वह सोने चाँदी में मढ़ा हुआ है, परन्तु उसमें जीवन नहीं है। (1 कुरि. 12:2)
20 परन्तु यहोवा अपने पवित्र मन्दिर में है; समस्त पृथ्वी उसके सामने शान्त रहे।
*2:3 2:3 इस दर्शन की बात नियत समय में पूरी होनेवाली है: वर्तमान में तो नहीं परन्तु समय के अन्तराल में विकसित होकर उस समय होगी जो केवल परमेश्वर ही जानता है।
†2:14 2:14 पृथ्वी यहोवा की महिमा के ज्ञान से ऐसी भर जाएगी: क्योंकि प्रभु की आत्मा से पृथ्वी ऐसी भर गई और भरने के कारण प्रभु की महिमा का ज्ञान व्याप्त हो गया जिससे अज्ञानी और अशिक्षित मनुष्य बुद्धिमान एवं बोलने में प्रवीण हो गया।
‡2:18 2:18 खुदी हुई मूरत में क्या लाभ देखकर: यह मूर्तिपूजा की विशेष मूर्खता थी। उसकी रचना हस्तकार से भी कम है। यह मूर्तिपूजा का एक भ्रष्ट विचार है कि कलाकार अपनी ही रची हुई वस्तु में आस्था रखे।