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आराम दिन को बारे म प्रश्न
(मत्ती १२:१; मरकुस २:२३-२८)
1 तब आराम को दिन ऊ गहूं खेतो म सी जाय रह्यो होतो, अऊर ओको चेलावों लोम्बा तोड़-तोड़ क अऊर हाथों सी मस-मस क खात जाय रह्यो होतो। 2 तब फरीसियों म सी कुछ कहन लग्यो, “तुम ऊ काम कहालीकि करय हय जो आराम को दिन जो नियम को खिलाफ हय ऊ करनो ठीक नहाय?”
3 यीशु न उन्ख उत्तर दियो, “का तुम न यो नहीं पढ़्यो कि दाऊद न, जब ऊ अऊर ओको संगी भूखो होतो त का करयो? 4 ऊ कसो परमेश्वर को मन्दिर म गयो, अऊर भेंट की रोटी ले क खायी, जिन्ख खानो याजकों ख छोड़ अऊर ऊ नियम को विरुद्ध हय, अऊर अपनो संगियों ख भी दियो।”
5 अऊर यीशु न उन्को सी कह्यो, “मय आदमी को बेटा आराम दिन को भी प्रभु हय।”
लकवा सी ग्रस्त हाथ वालो आदमी ख चंगो करनो
(मत्ती १२:९-१४; मरकुस ३:१-६)
6 असो भयो कि कोयी अऊर आराम को दिन ऊ आराधनालय म जाय क उपदेश करन लग्यो; अऊर उत एक आदमी होतो जेको दायो हाथ लकवा ग्रस्त होतो। 7 धर्मशास्त्री अऊर फरीसी ओको पर दोष लगावन को अवसर पावन की ताक म होतो कि देखे ऊ आराम को दिन चंगो करय हय कि नहीं। 8 पर ऊ उन्को बिचार जानत होतो; येकोलायी ओन लकवा ग्रस्त हाथ वालो आदमी सी कह्यो, “उठ, बीच म खड़ो हो।” ऊ बीच म खड़ो भयो। 9 यीशु न उन्को सी कह्यो, “मय तुम सी यो पूछू हय कि हमरो नियम को अनुसार आराम को दिन का ठीक हय, भलो करनो यां बुरो करनो; जीव ख बचावनो या नाश करनो?” 10 तब ओन चारयी तरफ उन सब ख देख क ऊ आदमी सी कह्यो, “अपनो हाथ बढ़ाव।” ओन असोच करयो, अऊर ओको हाथ फिर चंगो भय गयो।
11 पर हि गुस्सा म आय क बाहेर आपस म चर्चा करन लग्यो कि “हम यीशु को संग का करबो?”
बारा प्रेरितों* ६:१२ सन्देश दे क भेज्यो गयो सन्देश वाहक ख चुननो
(मत्ती १०:१-४; मरकुस ३:१३-१९)
12 उन दिनो म यीशु पहाड़ी पर प्रार्थना करन गयो, अऊर परमेश्वर सी प्रार्थना करन म पूरी रात बितायी। 13 जब दिन भयो त ओन अपनो चेलावों ख बुलाय क उन्म सी बारा ख चुन लियो, अऊर उन्ख प्रेरित कह्यो; 14 अऊर हि यो आय: शिमोन जेको नाम ओन पतरस भी रख्यो, अऊर ओको भाऊ अन्द्रियास, अऊर याकूब, अऊर यूहन्ना, अऊर फिलिप्पुस, अऊर बरतुल्मै, 15 अऊर मत्ती, अऊर थोमा, अऊर हलफई को बेटा याकूब, अऊर शिमोन जो † ६:१५ जेलोतेस देशभक्त कहलावय हय, 16 अऊर याकूब को बेटा यहूदा, अऊर यहूदा इस्करियोती जो ओको सौंपन वालो बन्यो।
शिक्षा देनो अऊर चंगो करनो
(मत्ती ४:२३-२५)
17 तब यीशु उन्को संग उतर क चौरस जागा म खड़ो भयो, अऊर ओको चेलावों की बड़ी भीड़, अऊर पूरो यहूदिया, यरूशलेम, अऊर सूर अऊर सैदा को समुन्दर को किनार सी बहुत लोग, 18 जो ओकी सुनन अऊर अपनी बीमारियों सी चंगो होन लायी ओको जवर आयो होतो, उत होतो। अऊर दुष्ट आत्मावों को सतायो हुयो लोग भी अच्छो करयो जात होतो। 19 सब ओख छूवनो चाहत होतो, कहालीकि ओको म सी सामर्थ निकल क सब ख चंगो करत होती।
आशीर्वाद अऊर शोक वचन
(मत्ती ५:१-१२)
20 तब ओन अपनो चेलावों की तरफ देख क कह्यो,
“धन्य हय तुम जो गरीब हय, कहालीकि परमेश्वर को राज्य तुम्हरो हय!”
21 “धन्य हय तुम जो अब भूखो हय,
कहालीकि सन्तुष्ट करयो जायेंन।”
“धन्य हय तुम जो अब रोवय हय,
कहालीकि तुम हसो।”
22 ✡ ६:२२ १ पतरस ४:१४“धन्य हय तुम जब आदमी को बेटा को वजह लोग तुम सी दुश्मनी करेंन, अऊर तुम्ख निकाल देयेंन, अऊर तुम्हरी निन्दा करेंन, अऊर तुम्हरो नाम बुरो जान क काट देयेंन।” 23 ✡ ६:२३ प्रेरितों ७:५२ऊ दिन खुश होय क उछलजो, कहालीकि देखो, तुम्हरो लायी स्वर्ग म बड़ो प्रतिफल हय; उन्को बाप-दादा भविष्यवक्तावों को संग भी वसोच करत होतो।
24 “पर हाय तुम पर जो धनवान हय,
कहालीकि तुम अपनो सुख पा लियो।”
25 “हाय तुम पर जो अब सन्तुष्ट हय,
कहालीकि भूखो होयेंन।”
“हाय तुम पर जो अब हसय हय,
कहालीकि शोक करो अऊर रोवो।
26 “हाय तुम पर जब सब आदमी तुम्ख भलो कहेंन, कहालीकि उन्को बाप-दादा झूठो भविष्यवक्तावों को संग भी असोच करत होतो।
दुश्मनों सी प्रेम
(मत्ती ५:३८-४८; ७:१२)
27 “पर मय तुम सुनन वालो सी कहू हय कि अपनो दुश्मनों सी प्रेम रखो; जो तुम सी दुश्मनी करेंन, उन्को भलो करो। 28 जो तुम्ख श्राप दे, उन्ख आशीर्वाद दे; जो तुम्हरो बुरो व्यवहार करेंन, उन्को लायी प्रार्थना करो। 29 जो तोरो एक गाल पर थापड़ मारेंन ओको तरफ दूसरों भी घुमाय दे; अऊर जो तोरो झंग्गा छीन लेन, ओख कुरता लेनो सी भी मत रोक। 30 जो कोयी तोरो सी मांगेंन, ओख दे; अऊर जो कोयी तोरी चिज छीन लेन, ओको सी फिर सी मत मांग। 31 ✡ ६:३१ मत्ती ७:१२जसो तुम चाहवय हय कि लोग तुम्हरो संग करेंन, तुम भी उन्को संग वसोच करो।
32 “यदि तुम अपनो प्रेम रखन वालो को संग प्रेम रखय, त तुम्हरी का बड़ायी? कहालीकि पापी भी अपनो प्रेम रखन वालो को संग प्रेम रखय हंय। 33 यदि तुम अपनो भलायी करन वालोच को संग भलायी करय हय, त तुम्हरी का बड़ायी? कहालीकि पापी भी असोच करय हंय। 34 यदि तुम उन्ख उधार दे जिन्कोसी फिर पावन कि आशा रखय हय, त तुम्हरी का बड़ायी? कहालीकि पापी पापियों ख उधार देवय हंय कि उतनोच फिर पावय। 35 बल्की अपनो दुश्मनों सी प्रेम रखो, अऊर भलायी करो, अऊर फिर पावन कि आशा नहीं रख क उधार दे; अऊर तुम्हरो लायी बड़ो फर होयेंन, अऊर परमेश्वर जो सब सी ऊचो हय ओको सन्तान ठहरो, कहालीकि ऊ उन पर जो धन्यवाद नहीं करय अऊर बुरो पर भी दयालु हय। 36 जसो तुम्हरो बाप दयावन्त हय, वसोच तुम भी दयावन्त बनो।
दोष मत लगावो
(मत्ती ७:१-४)
37 “दोष मत लगावो, त तुम पर भी दोष नहीं लगायो जायेंन। दोषी नहीं ठहरावों, त तुम भी दोषी नहीं ठहरायो जावो। माफ करो, त तुम्ख भी माफ करयो जायेंन। 38 दूसरों ख दे, त तुम्ख भी परमेश्वर देयेंन। लोग पूरो नाप दबाय दबाय क अऊर हिलाय हिलाय क अऊर उभरतो हुयो तुम्हरी गोदी म डालेंन, कहालीकि जो नाप सी तुम नापय हय, उच नाप सी तुम्हरो लायी भी नाप्यो जायेंन।”
39 ✡ ६:३९ मत्ती १५:१४तब यीशु न उन्को सी एक दृष्टान्त कह्यो: “का अन्धा, अन्धा ख रस्ता बताय सकय हय? का दोयी गड्डा म नहीं गिरेंन? 40 ✡ ६:४० मत्ती १०:२४,२५; यूहन्ना १३:१६; १५:२०चेला अपनो गुरु सी बड़ो नहाय, पर जो कोयी सिद्ध होयेंन, ऊ अपनो गुरु को जसो होयेंन।
41 “तय अपनो भाऊ की आंखी को तिनका ख का देखय हय, अऊर अपनी आंखी को लट्ठा तोख नहीं सूझय? 42 जब तय अपनोच आंखी को लट्ठा नहीं देखय, त अपनो भाऊ सी कसो कह्य सकय हय, ‘हे भाऊ; रुक जा तोरी आंखी सी तिनका ख निकाल देऊ?’ हे कपटी, पहिले अपनो आंखी सी लट्ठा निकाल, तब जो तिनका तोरो भाऊ कि आंखी म हय, ओख भली भाति देख क निकाल सकेंन।
जसो झाड़ वसो फर
(मत्ती ७:१६-२०; १२:३३-३५)
43 “कोयी अच्छो झाड़ नहीं जो खराब फर लेयेंन, अऊर नहीं त कोयी खराब झाड़ हय जो अच्छो फर लेयेंन। 44 ✡ ६:४४ मत्ती १२:३३हर एक झाड़ अपनो फर सी पहिचान्यो जावय हय; कहालीकि लोग काटा की झाड़ियों सी अंजीर नहीं तोड़य अऊर नहीं झड़बेरी सी अंगूर या बबुर को झाड़ सी आम्बा। 45 ✡ ६:४५ मत्ती १२:३४भलो आदमी अपनो दिल को भलो भण्डार सी भली बाते निकालय हय, अऊर बुरो आदमी अपनो मन को बुरो भण्डार सी बुरी बाते निकालय हय; कहालीकि जो मन म भरयो हय उच ओको मुंह पर आवय हय।
घर बनावन वालो दोय आदमी
(मत्ती ७:२४-२७)
46 “जब तुम मोरो कहनो नहीं मानय त कहालीकि मोख ‘हे प्रभु, हे प्रभु’ कह्य हय? 47 जो कोयी मोरो जवर आवय हय अऊर मोरी बाते सुन क उन्ख मानय हय, मय तुम्ख बताऊ हय कि ऊ कौन्को जसो हय: 48 यो ऊ आदमी को जसो हय, जेन घर बनावतो समय जमीन गहरी खोद क चट्टान पर पायवा डाल्यो, अऊर जब बाढ़ आयी त धार ओको पर टकरायी पर ओख हिलाय नहीं सकी; कहालीकि ऊ प्रबल बन्यो होतो। 49 पर जो सुन क नहीं मानय ऊ उन आदमी को जसो हय, जेन माटी पर बिना पायवा को घर बनायो, जब ओको पर धार टकरायी त ऊ तुरतच गिर पड़्यो अऊर गिर क ओको नाश भय गयो।”