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अल्लाह की तादीब तसलीम कर
1 बेशक आवाज़ दे, लेकिन कौन जवाब देगा? कोई नहीं! मुक़द्दसीन में से तू किसकी तरफ़ रुजू कर सकता है? 2 क्योंकि अहमक़ की रंजीदगी उसे मार डालती, सादालौह की सरगरमी उसे मौत के घाट उतार देती है। 3 मैंने ख़ुद एक अहमक़ को जड़ पकड़ते देखा, लेकिन मैंने फ़ौरन ही उसके घर पर लानत भेजी। 4 उसके फ़रज़ंद नजात से दूर रहते। उन्हें शहर के दरवाज़े में रौंदा जाता है, और बचानेवाला कोई नहीं। 5 भूके उस की फ़सल खा जाते, काँटेदार बाड़ों में महफ़ूज़ माल भी छीन लेते हैं। प्यासे अफ़राद हाँपते हुए उस की दौलत के पीछे पड़ जाते हैं। 6 क्योंकि बुराई ख़ाक से नहीं निकलती और दुख-दर्द मिट्टी से नहीं फूटता 7 बल्कि इनसान ख़ुद इसका बाइस है, दुख-दर्द उस की विरासत में ही पाया जाता है। यह इतना यक़ीनी है जितना यह कि आग की चिंगारियाँ ऊपर की तरफ़ उड़ती हैं।
8 लेकिन अगर मैं तेरी जगह होता तो अल्लाह से दरियाफ़्त करता, उसे ही अपना मामला पेश करता। 9 वही इतने अज़ीम काम करता है कि कोई उनकी तह तक नहीं पहुँच सकता, इतने मोजिज़े कि कोई उन्हें गिन नहीं सकता। 10 वही रूए-ज़मीन को बारिश अता करता, खुले मैदान पर पानी बरसा देता है। 11 पस्तहालों को वह सरफ़राज़ करता और मातम करनेवालों को उठाकर महफ़ूज़ मक़ाम पर रख देता है। 12 वह चालाकों के मनसूबे तोड़ देता है ताकि उनके हाथ नाकाम रहें। 13 वह दानिशमंदों को उनकी अपनी चालाकी के फंदे में फँसा देता है तो होशियारों की साज़िशें अचानक ही ख़त्म हो जाती हैं। 14 दिन के वक़्त उन पर अंधेरा छा जाता, और दोपहर के वक़्त भी वह टटोल टटोलकर फिरते हैं। 15 अल्लाह ज़रूरतमंदों को उनके मुँह की तलवार और ज़बरदस्त के क़ब्ज़े से बचा लेता है। 16 यों पस्तहालों को उम्मीद दी जाती और नाइनसाफ़ी का मुँह बंद किया जाता है।
17 मुबारक है वह इनसान जिसकी मलामत अल्लाह करता है! चुनाँचे क़ादिरे-मुतलक़ की तादीब को हक़ीर न जान। 18 क्योंकि वह ज़ख़मी करता लेकिन मरहम-पट्टी भी लगा देता है, वह ज़रब लगाता लेकिन अपने हाथों से शफ़ा भी बख़्शता है। 19 वह तुझे छः मुसीबतों से छुड़ाएगा, और अगर इसके बाद भी कोई आए तो तुझे नुक़सान नहीं पहुँचेगा। 20 अगर काल पड़े तो वह फ़िद्या देकर तुझे मौत से बचाएगा, जंग में तुझे तलवार की ज़द में आने नहीं देगा। 21 तू ज़बान के कोड़ों से महफ़ूज़ रहेगा, और जब तबाही आए तो डरने की ज़रूरत नहीं होगी। 22 तू तबाही और काल की हँसी उड़ाएगा, ज़मीन के वहशी जानवरों से ख़ौफ़ नहीं खाएगा। 23 क्योंकि तेरा खुले मैदान के पत्थरों के साथ अहद होगा, इसलिए उसके जंगली जानवर तेरे साथ सलामती से ज़िंदगी गुज़ारेंगे। 24 तू जान लेगा कि तेरा ख़ैमा महफ़ूज़ है। जब तू अपने घर का मुआयना करे तो मालूम होगा कि कुछ गुम नहीं हुआ। 25 तू देखेगा कि तेरी औलाद बढ़ती जाएगी, तेरे फ़रज़ंद ज़मीन पर घास की तरह फैलते जाएंगे। 26 तू वक़्त पर जमाशुदा पूलों की तरह उम्ररसीदा होकर क़ब्र में उतरेगा।
27 हमने तहक़ीक़ करके मालूम किया है कि ऐसा ही है। चुनाँचे हमारी बात सुनकर उसे अपना ले!”