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शमौन का इलाक़ा
जब क़ुरा डाला गया तो शमौन के क़बीले और उसके कुंबों को दूसरा हिस्सा मिल गया। उस की ज़मीन यहूदाह के क़बीले के इलाक़े के दरमियान थी। उसे यह शहर मिल गए : बैर-सबा (सबा), मोलादा, हसार-सुआल, बाला, अज़म, इलतोलद, बतूल, हुरमा, सिक़लाज, बैत-मर्कबोत, हसार-सूसा, बैत-लबाओत और सारूहन। इन शहरों की तादाद 13 थी। हर शहर के गिर्दो-नवाह की आबादियाँ उसके साथ गिनी जाती थीं। इनके अलावा यह चार शहर भी शमौन के थे : ऐन, रिम्मोन, इतर और असन। हर शहर के गिर्दो-नवाह की आबादियाँ उसके साथ गिनी जाती थीं। इन शहरों के गिर्दो-नवाह की तमाम आबादियाँ बालात-बैर यानी नजब के रामा तक उनके साथ गिनी जाती थीं। यह थी शमौन और उसके कुंबों की मिलकियत। यह जगहें इसलिए यहूदाह के क़बीले के इलाक़े से ली गईं कि यहूदाह का इलाक़ा उसके लिए बहुत ज़्यादा था। यही वजह है कि शमौन का इलाक़ा यहूदाह के बीच में है।
ज़बूलून का इलाक़ा
10-12 जब क़ुरा डाला गया तो ज़बूलून के क़बीले और उसके कुंबों को तीसरा हिस्सा मिल गया। उस की जुनूबी सरहद युक़नियाम की नदी से शुरू हुई और फिर मशरिक़ की तरफ़ दबासत, मरअला और सारीद से होकर किसलोत-तबूर के इलाक़े तक पहुँची। इसके बाद वह मुड़कर मशरिक़ी सरहद के तौर पर दाबरत के पास आई और चढ़ती चढ़ती यफ़ीअ पहुँची। 13 वहाँ से वह मज़ीद मशरिक़ की तरफ़ बढ़ती हुई जात-हिफ़र, एत-क़ाज़ीन और रिम्मोन से होकर नेआ के पास आई। 14 ज़बूलून की शिमाली और मग़रिबी सरहद हन्नातोन में से गुज़रती गुज़रती वादीए-इफ़ताहेल पर ख़त्म हुई। 15 बारह शहर उनके गिर्दो-नवाह की आबादियों समेत ज़बूलून की मिलकियत में आए जिनमें क़त्तात, नहलाल, सिमरोन, इदाला और बैत-लहम शामिल थे। 16 ज़बूलून के क़बीले को यही कुछ उसके कुंबों के मुताबिक़ मिल गया।
इशकार का इलाक़ा
17 जब क़ुरा डाला गया तो इशकार के क़बीले और उसके कुंबों को चौथा हिस्सा मिल गया। 18 उसका इलाक़ा यज़्रएल से लेकर शिमाल की तरफ़ फैल गया। यह शहर उसमें शामिल थे : कसूलोत, शूनीम, 19 हफ़ारैम, शियून, अनाख़रत, 20 रब्बीत, क़िसियोन, इबज़, 21 रैमत, ऐन-जन्नीम, ऐन-हद्दा और बैत-फ़स्सीस। 22 शिमाल में यह सरहद तबूर पहाड़ से शुरू हुई और शख़सूमा और बैत-शम्स से होकर दरियाए-यरदन तक उतर आई। 16 शहर उनके गिर्दो-नवाह की आबादियों समेत इशकार की मिलकियत में आए। 23 उसे यह पूरा इलाक़ा उसके कुंबों के मुताबिक़ मिल गया।
आशर का इलाक़ा
24 जब क़ुरा डाला गया तो आशर के क़बीले और उसके कुंबों को पाँचवाँ हिस्सा मिल गया। 25 उसके इलाक़े में यह शहर शामिल थे : ख़िलक़त, हली, बतन, अकशाफ़, 26 अलम्मलिक, अमआद और मिसाल। उस की सरहद समुंदर के साथ साथ चलती हुई करमिल के पहाड़ी सिलसिले के दामन में से गुज़री और उतरती उतरती सैहूर-लिबनात तक पहुँची। 27 वहाँ वह मशरिक़ में बैत-दजून की तरफ़ मुड़कर ज़बूलून के इलाक़े तक पहुँची और उस की मग़रिबी सरहद के साथ चलती चलती शिमाल में वादीए-इफ़ताहेल तक पहुँची। आगे बढ़ती हुई वह बैत-इमक़ और नइयेल से होकर शिमाल की तरफ़ मुड़ी जहाँ काबूल था। 28 फिर वह इबरून, रहोब, हम्मून और क़ाना से होकर बड़े शहर सैदा तक पहुँची। 29 इसके बाद आशर की सरहद रामा की तरफ़ मुड़कर फ़सीलदार शहर सूर के पास आई। वहाँ वह हूसा की तरफ़ मुड़ी और चलती चलती अकज़ीब के क़रीब समुंदर पर ख़त्म हुई। 30 22 शहर उनके गिर्दो-नवाह की आबादियों समेत आशर की मिलकियत में आए। इनमें उम्मा, अफ़ीक़ और रहोब शामिल थे। 31 आशर को उसके कुंबों के मुताबिक़ यही कुछ मिला।
नफ़ताली का इलाक़ा
32 जब क़ुरा डाला गया तो नफ़ताली के क़बीले और उसके कुंबों को छटा हिस्सा मिल गया। 33-34 जुनूब में उस की सरहद दरियाए-यरदन पर लक़्क़ूम से शुरू हुई और मग़रिब की तरफ़ चलती चलती यबनियेल, अदामी-नक़ब, ऐलोन-ज़ाननीम और हलफ़ से होकर अज़नूत-तबूर तक पहुँची। वहाँ से वह मग़रिबी सरहद की हैसियत से हुक़्क़ोक़ के पास आई। नफ़ताली की जुनूबी सरहद ज़बूलून की शिमाली सरहद और मग़रिब में आशर की मशरिक़ी सरहद थी। दरियाए-यरदन और यहूदाह *यहाँ यहूदाह का मतलब मुल्के-बसन हो सकता है जो मनस्सी के इलाक़े में था लेकिन जिस पर यहूदाह के क़बीले के मर्द याईर ने फ़तह पाई थी। उस की मशरिक़ी सरहद थी। 35 ज़ैल के फ़सीलदार शहर नफ़ताली की मिलकियत में आए : सद्दीम, सैर, हम्मत, रक़्क़त, किन्नरत, 36 अदामा, रामा, हसूर, 37 क़ादिस, इदरई, ऐन-हसूर, 38 इरून, मिजदलेल, हुरीम, बैत-अनात और बैत-शम्स। ऐसे 19 शहर थे। हर शहर के गिर्दो-नवाह की आबादियाँ भी उसके साथ गिनी जाती थीं। 39 नफ़ताली को यही कुछ उसके कुंबों के मुताबिक़ मिला।
दान का इलाक़ा
40 जब क़ुरा डाला गया तो दान के क़बीले और उसके कुंबों को सातवाँ हिस्सा मिला। 41 उसके इलाक़े में यह शहर शामिल थे : सुरआ, इस्ताल, ईर-शम्स, 42 शालब्बीन, ऐयालोन, इतला, 43 ऐलोन, तिमनत, अक़रून, 44 इल्तक़िह, जिब्बतून, बालात, 45 यहूद, बनी-बरक़, जात-रिम्मोन, 46 मे-यरक़ून और रक़्क़ून उस इलाक़े समेत जो याफ़ा के मुक़ाबिल है। 47 अफ़सोस, दान का क़बीला अपने इस इलाक़े पर क़ब्ज़ा करने में कामयाब न हुआ, इसलिए उसके मर्दों ने लशम शहर पर हमला करके उस पर फ़तह पाई और उसके बाशिंदों को तलवार से मार डाला। फिर वह ख़ुद वहाँ आबाद हुए। उस वक़्त लशम शहर का नाम दान में तबदील हुआ। (दान उनके क़बीले का बाप था।) 48 लेकिन यशुअ के ज़माने में दान के क़बीले को उसके कुंबों के मुताबिक़ मज़कूरा तमाम शहर और उनके गिर्दो-नवाह की आबादियाँ मिल गईं।
यशुअ को भी ज़मीन मिलती है
49 पूरे मुल्क को तक़सीम करने के बाद इसराईलियों ने यशुअ बिन नून को भी अपने दरमियान कुछ मौरूसी ज़मीन दे दी। 50 रब के हुक्म पर उन्होंने उसे इफ़राईम का शहर तिमनत-सिरह दे दिया। यशुअ ने ख़ुद इसकी दरख़ास्त की थी। वहाँ जाकर उसने शहर को अज़ सरे-नौ तामीर किया और उसमें आबाद हुआ।
51 ग़रज़ यह वह तमाम ज़मीनें हैं जो इलियज़र इमाम, यशुअ बिन नून और क़बीलों के आबाई घरानों के सरबराहों ने सैला में मुलाक़ात के ख़ैमे के दरवाज़े पर क़ुरा डालकर तक़सीम की थीं। यों तक़सीम करने का यह काम मुकम्मल हुआ।

*19:33-34 यहाँ यहूदाह का मतलब मुल्के-बसन हो सकता है जो मनस्सी के इलाक़े में था लेकिन जिस पर यहूदाह के क़बीले के मर्द याईर ने फ़तह पाई थी।