थिस्सलुनीकियों के नाम पौलुस प्रेरित की पहली पत्री
लेखक
प्रेरित पौलुस दो बार स्वयं को इसका लेखक बताता है (1:1, 2:18)। सीलास और तीमुथियुस पौलुस की दूसरी प्रचार-यात्रा में उसके साथ थे (3:2,6)। जब उन्होंने यह कलीसिया आरम्भ की थी (प्रेरि. 17:1-9) तब उसने वहाँ से प्रस्थान करने के कुछ ही समय बाद वहाँ के विश्वासियों को यह पत्र लिखा था। थिस्सलुनीके नगर में पौलुस की मसीही सेवा ने स्पष्टतः यहूदी ही नहीं अन्यजाति को भी छुआ कलीसिया में अनेक अन्यजाति मूर्तिपूजक पृष्ठभूमि से आए थे परन्तु उस युग के यहूदियों की यह समस्या नहीं थी (1 थिस्स. 1:9)।
लेखन तिथि एवं स्थान
लगभग ई.स. 51
पौलुस ने थिस्सलुनीके की कलीसिया को अपना प्रथम पत्र कुरिन्थ नगर से लिखा था।
प्रापक
1 थिस्स. 1:1 इस प्रथम पत्र के पाठकों की पहचान कराता है, “थिस्सलुनीके की कलीसिया के नाम” परन्तु सामान्यतः यह पत्र सर्वत्र उपस्थित विश्वासियों से बातें करता है।
उद्देश्य
इस पत्र के पीछे पौलुस का उद्देश्य था कि नये विश्वासियों को परीक्षा के समय में प्रोत्साहन प्रदान करे (3:3-5), और परमेश्वर परायण जीवन के निर्देश दे (4:1-12), और मसीह के पुनः आगमन से पूर्व मरणहार विश्वासियों को भविष्य के बारे में आश्वस्त करे (4:13-18) तथा कुछ नैतिक एवं व्यावहारिक विषयों में उनका सुधार करे।
मूल विषय
कलीसिया के लिए चिंतित
रूपरेखा
1. धन्यवाद — 1:1-10
2. प्रेरितों के काम की प्रतिरक्षा — 2:1-3:13
3. थिस्सलुनीके की कलीसिया को प्रबोधन — 4:1-5:22
4. समापन प्रार्थना एवं आशीर्वाद — 5:23-28
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शुभकामनाएँ
1 पौलुस और सिलवानुस और तीमुथियुस की ओर से थिस्सलुनीकियों की कलीसिया के नाम जो पिता परमेश्वर और प्रभु यीशु मसीह में है। अनुग्रह और शान्ति तुम्हें मिलती रहे।
थिस्सलुनीकियों का अच्छा उदाहरण
2 हम अपनी प्रार्थनाओं में तुम्हें स्मरण करते और सदा तुम सब के विषय में परमेश्वर का धन्यवाद करते हैं, 3 और अपने परमेश्वर और पिता के सामने तुम्हारे विश्वास के काम, और प्रेम का परिश्रम, और हमारे प्रभु यीशु मसीह में आशा की धीरता को लगातार स्मरण करते हैं। 4 और हे भाइयों, परमेश्वर के प्रिय लोगों हम जानते हैं, कि तुम चुने हुए हो। (इफि. 1:4) 5 क्योंकि हमारा सुसमाचार तुम्हारे पास न केवल वचन मात्र ही में वरन् सामर्थ्य* 1:5 वरन् सामर्थ्य: प्रेरित स्पष्ट रूप से दर्शाता है कि वहाँ किसी चमत्कार का प्रदर्शन नहीं किया गया, परन्तु उन पर सुसमाचार का प्रभाव था जिन्होंने उसे सुना। और पवित्र आत्मा, और बड़े निश्चय के साथ पहुँचा है; जैसा तुम जानते हो, कि हम तुम्हारे लिये तुम में कैसे बन गए थे। 6 और तुम बड़े क्लेश में पवित्र आत्मा के आनन्द के साथ वचन को मानकर हमारी और प्रभु के समान चाल चलने लगे। 7 यहाँ तक कि मकिदुनिया और अखाया के सब विश्वासियों के लिये तुम आदर्श बने। 8 क्योंकि तुम्हारे यहाँ से न केवल मकिदुनिया और अखाया में प्रभु का वचन सुनाया गया, पर तुम्हारे विश्वास की जो परमेश्वर पर है, हर जगह ऐसी चर्चा फैल गई है, कि हमें कहने की आवश्यकता ही नहीं। 9 क्योंकि वे आप ही हमारे विषय में बताते हैं कि तुम्हारे पास हमारा आना कैसा हुआ; और तुम क्यों मूरतों से परमेश्वर की ओर फिरे ताकि जीविते और सच्चे परमेश्वर की सेवा करो। 10 और उसके पुत्र के स्वर्ग पर से आने की प्रतीक्षा करते रहो† 1:10 उसके पुत्र के स्वर्ग पर से आने की प्रतीक्षा करते रहो: आगमन का उपदेश थिस्सलुनीकियों के कलीसिया में पौलुस के प्रचार का एक प्रमुख विषय था। जिसे उसने मरे हुओं में से जिलाया, अर्थात् यीशु को, जो हमें आनेवाले प्रकोप से बचाता है।
*1:5 1:5 वरन् सामर्थ्य: प्रेरित स्पष्ट रूप से दर्शाता है कि वहाँ किसी चमत्कार का प्रदर्शन नहीं किया गया, परन्तु उन पर सुसमाचार का प्रभाव था जिन्होंने उसे सुना।
†1:10 1:10 उसके पुत्र के स्वर्ग पर से आने की प्रतीक्षा करते रहो: आगमन का उपदेश थिस्सलुनीकियों के कलीसिया में पौलुस के प्रचार का एक प्रमुख विषय था।