कुलुस्सियों के नाम पौलुस प्रेरित की पत्री
लेखक
कुलुस्से की कलीसिया को लिखा गया यह पत्र पौलुस का ही प्रामाणिक पत्र है (1:1)। आरम्भिक कलीसिया में जो भी लेखक के विषय चर्चा करते हैं इसे पौलुस की कृति मानते हैं। कुलुस्से की कलीसिया स्वयं पौलुस ने आरम्भ नहीं की थी। पौलुस के किसी सहकर्मी सम्भवतः इपफ्रास ने वहाँ शुभ सन्देश पहुँचाया था (4:12,13)। वहाँ भी झूठे शिक्षक विचित्र नई शिक्षाएँ लेकर पहुँच गये थे। उन्होंने विजातीय तत्व-ज्ञान एवं यहूदी मान्यताओं को मसीही विश्वास में जोड़ दिया था। पौलुस ने इस झूठी शिक्षा का खण्डन करके यह सिद्ध किया कि मसीह ही सर्वेसर्वा है।
कुलुस्से की कलीसिया को लिखा यह पत्र “सम्पूर्ण नये नियम में सबसे अधिक मसीह केन्द्रित पत्र” माना जाता है। इसमें मसीह यीशु को सब वस्तुओं पर परमप्रधान दर्शाया गया है।
लेखन तिथि एवं स्थान
लगभग ई.स. 60
पौलुस ने यह पत्र सम्भवतः रोम से लिखा था जब प्रथम बार कारागार में था।
प्रापक
पौलुस ने यह पत्र कुलुस्से की कलीसिया को लिखा था, “उन पवित्र और विश्वासी भाइयों के नाम जो कुलुस्से में रहते हैं।” (1:1-2) यह कलीसिया इफिसुस से लगभग 150 कि.मी. भीतर लाइकुस घाटी में थी। पौलुस इस कलीसिया में कभी नहीं गया। (1:4; 2:1)
उद्देश्य
पौलुस उस विनाशकारी झूठी शिक्षा के विरुद्ध परामर्श देता है जिसका उदय कुलुस्सियों में हुआ था। इन झूठी शिक्षाओं के प्रतिवाद में सम्पूर्ण सृष्टि पर मसीह की पूर्ण, अपरोक्ष एवं सतत् सर्वश्रेष्ठता को महत्त्व प्रदान करने के लिए (1:15; 3:4); पाठकों को सम्पूर्ण सृष्टि के परमप्रधान मसीह को निहारते हुए जीवन जीने का प्रोत्साहन देने के लिए (3:5; 4:6)। और कलीसिया को प्रोत्साहित करने के लिए कि वे अनुशासित मसीही जीवन जीएँ तथा झूठे शिक्षकों द्वारा उत्पन्न संकट के समय अपने विश्वास में दृढ़ रहें, यह पत्री लिखी (2:2-5)।
मूल विषय
मसीह की सर्वोच्चता
रूपरेखा
1. पौलुस की प्रार्थना — 1:1-14
2. “मसीह में” पौलुस की शिक्षा — 1:15-23
3. परमेश्वर की योजना एवं उद्देश्य में पौलुस का स्थान — 1:24-2:5
4. झूठी शिक्षाओं के विरुद्ध चेतावनी — 2:6-15
5. संकट पूर्ण झूठी शिक्षाओं से पौलुस का सामना — 2:16-3:4
6. मसीह में नए मनुष्यत्व का वर्णन — 3:5-25
7. प्रशंसा एवं समापन — 4:1-18
1
शुभकामनाएँ
1 पौलुस की ओर से, जो परमेश्वर की इच्छा से मसीह यीशु का प्रेरित है, और भाई तीमुथियुस की ओर से, 2 मसीह में उन पवित्र और विश्वासी भाइयों के नाम जो कुलुस्से में रहते हैं। हमारे पिता परमेश्वर की ओर से तुम्हें अनुग्रह और शान्ति प्राप्त होती रहे।
धन्यवाद
3 हम तुम्हारे लिये नित प्रार्थना करके अपने प्रभु यीशु मसीह के पिता अर्थात् परमेश्वर का धन्यवाद करते हैं। 4 क्योंकि हमने सुना है, कि मसीह यीशु पर तुम्हारा विश्वास है, और सब पवित्र लोगों से प्रेम रखते हो; 5 उस आशा की हुई वस्तु के कारण जो तुम्हारे लिये स्वर्ग में रखी हुई है, जिसका वर्णन तुम उस सुसमाचार के सत्य वचन में सुन चुके हो। 6 जो तुम्हारे पास पहुँचा है और जैसा जगत में भी फल लाता* 1:6 फल लाता: धार्मिकता या अच्छा जीवन जीने का फल। , और बढ़ता जाता है; वैसे ही जिस दिन से तुम ने उसको सुना, और सच्चाई से परमेश्वर का अनुग्रह पहचाना है, तुम में भी ऐसा ही करता है। 7 उसी की शिक्षा तुम ने हमारे प्रिय सहकर्मी इपफ्रास से पाई, जो हमारे लिये मसीह का विश्वासयोग्य सेवक है। 8 उसी ने तुम्हारे प्रेम को जो आत्मा में है हम पर प्रगट किया।
आत्मिक उन्नति के लिये प्रार्थना
9 इसलिए जिस दिन से यह सुना है, हम भी तुम्हारे लिये यह प्रार्थना करने और विनती करने से नहीं चूकते कि तुम सारे आत्मिक ज्ञान और समझ सहित परमेश्वर की इच्छा की पहचान में परिपूर्ण हो जाओ, 10 ताकि तुम्हारा चाल-चलन प्रभु के योग्य हो† 1:10 तुम्हारा चाल-चलन प्रभु के योग्य हो: ताकि आप प्रभु के अनुसरण करनेवाले शिष्य के रूप में जी सको।, और वह सब प्रकार से प्रसन्न हो, और तुम में हर प्रकार के भले कामों का फल लगे, और परमेश्वर की पहचान में बढ़ते जाओ, 11 और उसकी महिमा की शक्ति के अनुसार सब प्रकार की सामर्थ्य से बलवन्त होते जाओ, यहाँ तक कि आनन्द के साथ हर प्रकार से धीरज और सहनशीलता दिखा सको। 12 और पिता का धन्यवाद करते रहो, जिसने हमें इस योग्य बनाया कि ज्योति में पवित्र लोगों के साथ विरासत में सहभागी हों। 13 उसी ने हमें अंधकार के वश से छुड़ाकर अपने प्रिय पुत्र के राज्य में प्रवेश कराया, 14 जिसमें हमें छुटकारा अर्थात् पापों की क्षमा प्राप्त होती है।
मसीह की श्रेष्ठता और उसके कार्य
15 पुत्र तो अदृश्य परमेश्वर का प्रतिरूप‡ 1:15 पुत्र तो अदृश्य परमेश्वर का प्रतिरूप: अर्थ है कि वह मानवजाति के लिए परमेश्वर की पूर्णता का प्रतिनिधित्व करता है। और सारी सृष्टि में पहलौठा है। 16 क्योंकि उसी में सारी वस्तुओं की सृष्टि हुई, स्वर्ग की हो अथवा पृथ्वी की, देखी या अनदेखी, क्या सिंहासन, क्या प्रभुताएँ, क्या प्रधानताएँ, क्या अधिकार, सारी वस्तुएँ उसी के द्वारा और उसी के लिये सृजी गई हैं। 17 और वही सब वस्तुओं में प्रथम है, और सब वस्तुएँ उसी में स्थिर रहती हैं। (प्रका. 1:8) 18 वही देह, अर्थात् कलीसिया का सिर है; वही आदि है और मरे हुओं में से जी उठनेवालों में पहलौठा कि सब बातों में वही प्रधान ठहरे। 19 क्योंकि पिता की प्रसन्नता इसी में है कि उसमें सारी परिपूर्णता वास करे। 20 और उसके क्रूस पर बहे हुए लहू के द्वारा मेल-मिलाप करके, सब वस्तुओं को उसी के द्वारा से अपने साथ मेल कर ले चाहे वे पृथ्वी पर की हों, चाहे स्वर्ग की।
21 तुम जो पहले पराए थे और बुरे कामों के कारण मन से बैरी थे। 22 उसने अब उसकी शारीरिक देह में मृत्यु के द्वारा तुम्हारा भी मेल कर लिया ताकि तुम्हें अपने सम्मुख पवित्र और निष्कलंक, और निर्दोष बनाकर उपस्थित करे। 23 यदि तुम विश्वास की नींव पर दृढ़ बने रहो, और उस सुसमाचार की आशा को जिसे तुम ने सुना है न छोड़ो, जिसका प्रचार आकाश के नीचे की सारी सृष्टि में किया गया; और जिसका मैं पौलुस सेवक बना।
कलीसिया के लिये परिश्रम
24 अब मैं उन दुःखों के कारण आनन्द करता हूँ, जो तुम्हारे लिये उठाता हूँ, और मसीह के क्लेशों की घटी उसकी देह के लिये, अर्थात् कलीसिया के लिये, अपने शरीर में पूरी किए देता हूँ, 25 जिसका मैं परमेश्वर के उस प्रबन्ध के अनुसार सेवक बना, जो तुम्हारे लिये मुझे सौंपा गया, ताकि मैं परमेश्वर के वचन को पूरा-पूरा प्रचार करूँ। 26 अर्थात् उस भेद को जो समयों और पीढ़ियों से गुप्त रहा, परन्तु अब उसके उन पवित्र लोगों पर प्रगट हुआ है। 27 जिन पर परमेश्वर ने प्रगट करना चाहा, कि उन्हें ज्ञात हो कि अन्यजातियों में उस भेद की महिमा का मूल्य क्या है, और वह यह है, कि मसीह जो महिमा की आशा है तुम में रहता है। 28 जिसका प्रचार करके हम हर एक मनुष्य को जता देते हैं और सारे ज्ञान से हर एक मनुष्य को सिखाते हैं, कि हम हर एक व्यक्ति को मसीह में सिद्ध करके उपस्थित करें। 29 और इसी के लिये मैं उसकी उस शक्ति के अनुसार जो मुझ में सामर्थ्य के साथ प्रभाव डालती है तन मन लगाकर परिश्रम भी करता हूँ।