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बुद्धि के लाभ
1 हे मेरे पुत्रों, पिता की शिक्षा सुनो,
और समझ प्राप्त करने में मन लगाओ।
2 क्योंकि मैंने तुम को उत्तम शिक्षा दी है;
मेरी शिक्षा को न छोड़ो।
3 देखो, मैं भी अपने पिता का पुत्र था,
और माता का एकलौता दुलारा था,
4 और मेरा पिता मुझे यह कहकर सिखाता था,
“तेरा मन मेरे वचन पर लगा रहे;
तू मेरी आज्ञाओं का पालन कर, तब जीवित रहेगा।
5 बुद्धि को प्राप्त कर, समझ को भी प्राप्त कर;
उनको भूल न जाना, न मेरी बातों को छोड़ना।
6 बुद्धि को न छोड़ और वह तेरी रक्षा करेगी;
उससे प्रीति रख और वह तेरा पहरा देगी।
7 बुद्धि श्रेष्ठ है इसलिए उसकी प्राप्ति के लिये यत्न कर;
अपना सब कुछ खर्च कर दे ताकि समझ को प्राप्त कर सके।
8 उसकी बड़ाई कर, वह तुझको बढ़ाएगी;
जब तू उससे लिपट जाए, तब वह तेरी महिमा करेगी।
9 वह तेरे सिर पर शोभायमान आभूषण बाँधेगी;
और तुझे सुन्दर मुकुट देगी।”
10 हे मेरे पुत्र, मेरी बातें सुनकर ग्रहण कर,
तब तू बहुत वर्ष तक जीवित रहेगा।
11 मैंने तुझे बुद्धि का मार्ग बताया है;
और सिधाई के पथ पर चलाया है।
12 जिसमें चलने पर तुझे रोक टोक न होगी* 4:12 चलने पर तुझे रोक टोक न होगी: बुद्धि का मार्ग एक स्पष्ट एवं खुला पथ है उसमें बाधाएँ विलोप हो जाती है। शीघ्रता के काम में (जैसे दौड़ना) गिरने का संकट नहीं होता।,
और चाहे तू दौड़े, तो भी ठोकर न खाएगा।
13 शिक्षा को पकड़े रह, उसे छोड़ न दे;
उसकी रक्षा कर, क्योंकि वही तेरा जीवन है।
14 दुष्टों की डगर में पाँव न रखना,
और न बुरे लोगों के मार्ग पर चलना।
15 उसे छोड़ दे, उसके पास से भी न चल,
उसके निकट से मुड़कर आगे बढ़ जा।
16 क्योंकि दुष्ट लोग यदि बुराई न करें, तो उनको नींद नहीं आती;
और जब तक वे किसी को ठोकर न खिलाएँ, तब तक उन्हें नींद नहीं मिलती।
17 क्योंकि वे दुष्टता की रोटी खाते,
और हिंसा का दाखमधु पीते हैं।
18 परन्तु धर्मियों की चाल, भोर-प्रकाश के समान है,
जिसकी चमक दोपहर तक बढ़ती जाती है।
19 दुष्टों का मार्ग घोर अंधकारमय है;
वे नहीं जानते कि वे किस से ठोकर खाते हैं।
20 हे मेरे पुत्र मेरे वचन ध्यान धरके सुन,
और अपना कान मेरी बातों पर लगा।
21 इनको अपनी आँखों से ओझल न होने दे;
वरन् अपने मन में धारण कर।
22 क्योंकि जिनको वे प्राप्त होती हैं, वे उनके जीवित रहने का,
और उनके सारे शरीर के चंगे रहने का कारण होती हैं।
23 सबसे अधिक अपने मन की रक्षा कर;
क्योंकि जीवन का मूल स्रोत वही है।
24 टेढ़ी बात अपने मुँह से मत बोल,
और चालबाजी की बातें कहना तुझ से दूर रहे।
25 तेरी आँखें सामने ही की ओर लगी रहें,
और तेरी पलकें आगे की ओर खुली रहें।
26 अपने पाँव रखने के लिये मार्ग को समतल कर,
तब तेरे सब मार्ग ठीक रहेंगे। (इब्रा. 12:13)
27 न तो दाहिनी ओर मुड़ना, और न बाईं ओर;
अपने पाँव को बुराई के मार्ग पर चलने से हटा ले।
*4:12 4:12 चलने पर तुझे रोक टोक न होगी: बुद्धि का मार्ग एक स्पष्ट एवं खुला पथ है उसमें बाधाएँ विलोप हो जाती है। शीघ्रता के काम में (जैसे दौड़ना) गिरने का संकट नहीं होता।