तीतुस के नाम प्रेरित पौलुस की पत्री
लेखक
पौलुस स्वयं को इस पत्र का लेखक कहता है। वह स्वयं को “परमेश्वर का दास एवं मसीह यीशु का प्रेरित” कहता है (तीतु. 1:1)। तीतुस के साथ पौलुस के सम्बंध का उद्देश्य स्पष्ट नहीं है। हमें यही समझ में आता है कि उसने पौलुस की सेवा में मसीह को ग्रहण किया था। पौलुस उसे अपना पुत्र कहता है, “जो विश्वास की सहभागिता के विचार से मेरा सच्चा पुत्र है” (1:4)। पौलुस तीतुस को एक मित्र और सुसमाचार में सहकर्मी मानकर सम्मान प्रदान करता था। अनुराग, सत्यनिष्ठा और लोगों को शान्ति दिलाने के कारण वह उसकी प्रशंसा भी करता है।
लेखन तिथि एवं स्थान
लगभग ई.स. 63 - 65
पहली बार कारागार से मुक्ति पाने के बाद पौलुस ने तीतुस को यह पत्र निकोपोलिस से लिखा था। तीमुथियुस को इफिसुस में छोड़ने के बाद पौलुस तीतुस के साथ क्रेते में आया था।
प्रापक
तीतुस, एक और सहकर्मी तथा विश्वास में पौलुस का पुत्र जो क्रेते में था।
उद्देश्य
इस पत्र को लिखने में पौलुस का उद्देश्य यह था की, क्रेते की कलीसिया में जो भी कमी थी उसे सुधारने के लिए तीतुस को परामर्श देना वहाँ व्यवस्था की कमी और कुछ अनुशासन रहित मनुष्यों के सुधार में सहायता करना (1) धर्मवृद्धों की नियुक्ति और (2) क्रेते में अविश्वासियों के मध्य विश्वास की उचित गवाही देना (तीतु. 1:5)।
मूल विषय
आचरण की नियमावली
रूपरेखा
1. अभिवादन — 1:1-4
2. धर्मवृद्धों की नियुक्ति — 1:5-16
3. विभिन्न आयु के मनुष्यों के लिए निर्देश — 2:1-3:11
4. समापन टिप्पणी — 3:12-15
1
शुभकामनाएँ
पौलुस की ओर से, जो परमेश्वर का दास और यीशु मसीह का प्रेरित है, परमेश्वर के चुने हुए लोगों के विश्वास को स्थापित करने और सच्चाई का ज्ञान स्थापित करने के लिए जो भक्ति के साथ सहमत हैं, उस अनन्त जीवन की आशा पर, जिसकी प्रतिज्ञा परमेश्वर ने जो झूठ बोल नहीं सकता सनातन से की है, पर ठीक समय पर* 1:3 ठीक समय पर: ठीक समय पर, जो उन्होंने सबसे बेहतर समय नियुक्त किया था। अपने वचन को उस प्रचार के द्वारा प्रगट किया, जो हमारे उद्धारकर्ता परमेश्वर की आज्ञा के अनुसार मुझे सौंपा गया।
तीतुस के नाम जो विश्वास की सहभागिता के विचार से मेरा सच्चा पुत्र है: परमेश्वर पिता और हमारे उद्धारकर्ता मसीह यीशु की ओर से तुझे अनुग्रह और शान्ति होती रहे।
प्राचीन की योग्यताएँ
मैं इसलिए तुझे क्रेते में छोड़ आया था, कि तू शेष रही हुई बातों को सुधारें, और मेरी आज्ञा के अनुसार नगर-नगर प्राचीनों को नियुक्त करे। जो निर्दोष और एक ही पत्नी का पति हो, जिनके बच्चे विश्वासी हो, और जिन पर लुचपन और निरंकुशता का दोष नहीं। क्योंकि अध्यक्ष को परमेश्वर का भण्डारी होने के कारण निर्दोष होना चाहिए; न हठी, न क्रोधी, न पियक्कड़, न मारपीट करनेवाला, और न नीच कमाई का लोभी। पर पहुनाई करनेवाला, भलाई का चाहनेवाला, संयमी, न्यायी, पवित्र और जितेन्द्रिय हो; और विश्वासयोग्य वचन पर जो धर्मोपदेश के अनुसार है, स्थिर रहे; कि खरी शिक्षा से उपदेश 1:9 खरी शिक्षा से उपदेश: अर्थात् सुसमाचार की खरी शिक्षा। इसका मतलब हैं कि वह इसे पकड़कर स्थिर रहें, उनके विरोध में जो इसे खीच कर दूर कर सकता हैं। दे सके; और विवादियों का मुँह भी बन्द कर सके।
पाखण्डी शिक्षक
10 क्योंकि बहुत से अनुशासनहीन लोग, निरंकुश बकवादी और धोखा देनेवाले हैं; विशेष करके खतनावालों में से। 11 इनका मुँह बन्द करना चाहिए: ये लोग नीच कमाई के लिये अनुचित बातें सिखाकर घर के घर बिगाड़ देते हैं। 12 उन्हीं में से एक जन ने जो उन्हीं का भविष्यद्वक्ता है, कहा है, “क्रेती लोग सदा झूठे, दुष्ट पशु और आलसी पेटू होते हैं।” 13 यह गवाही सच है, इसलिए उन्हें कड़ाई से चेतावनी दिया कर, कि वे विश्वास में पक्के हो जाएँ। 14 यहूदियों की कथा कहानियों और उन मनुष्यों की आज्ञाओं पर मन न लगाएँ, जो सत्य से भटक जाते हैं। 15 शुद्ध लोगों के लिये सब वस्तुएँ शुद्ध हैं, पर अशुद्ध और अविश्वासियों के लिये कुछ भी शुद्ध नहीं वरन् उनकी बुद्धि और विवेक दोनों अशुद्ध हैं। 16 वे कहते हैं, कि हम परमेश्वर को जानते हैं पर अपने कामों से उसका इन्कार करते हैं 1:16 पर अपने कामों से उसका इन्कार करते हैं: उनका आचरण इस तरह का दिखता हैं कि उन्हें उनके साथ कोई वास्तविक रिश्ता नहीं हैं।, क्योंकि वे घृणित और आज्ञा न माननेवाले हैं और किसी अच्छे काम के योग्य नहीं।

*1:3 1:3 ठीक समय पर: ठीक समय पर, जो उन्होंने सबसे बेहतर समय नियुक्त किया था।

1:9 1:9 खरी शिक्षा से उपदेश: अर्थात् सुसमाचार की खरी शिक्षा। इसका मतलब हैं कि वह इसे पकड़कर स्थिर रहें, उनके विरोध में जो इसे खीच कर दूर कर सकता हैं।

1:16 1:16 पर अपने कामों से उसका इन्कार करते हैं: उनका आचरण इस तरह का दिखता हैं कि उन्हें उनके साथ कोई वास्तविक रिश्ता नहीं हैं।