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परमेश्वर की प्रजा के लिए शब्बाथ-विश्राम
1 इसलिये हम इस विषय में विशेष सावधान रहें कि जब तक उनके विश्राम में प्रवेश की प्रतिज्ञा मान्य है, आप में से कोई भी उसमें प्रवेश से चूक न जाए. 2 हमें भी ईश्वरीय सुसमाचार उसी प्रकार सुनाया गया था जैसे उन्हें, किंतु सुना हुआ वह ईश्वरीय सुसमाचार उनके लिए लाभप्रद सिद्ध नहीं हुआ क्योंकि उन्होंने इसे विश्वास से ग्रहण नहीं किया था. 3 हमने, जिन्होंने विश्वास किया, उस विश्राम में प्रवेश पाया, ठीक जैसा उनका कहना था,
“जैसे मैंने अपने क्रोध में शपथ खाई,
‘वे मेरे विश्राम में प्रवेश कभी न पाएंगे.’ ”* 4:3 स्तोत्र 95:11
यद्यपि उनके काम सृष्टि के प्रारंभ से ही पूरे हो चुके थे. 4 उन्होंने सातवें दिन के संबंध में किसी स्थान पर इस प्रकार वर्णन किया था: “तब सातवें दिन परमेश्वर ने अपने सभी कामों से विश्राम किया.”† 4:4 उत्प 2:2 5 एक बार फिर इसी भाग में, “वे मेरे विश्राम में प्रवेश कभी न करेंगे.”‡ 4:5 स्तोत्र 95:11
6 इसलिये कि कुछ के लिए यह प्रवेश अब भी खुला आमंत्रण है तथा उनके लिए भी, जिन्हें इसके पूर्व ईश्वरीय सुसमाचार सुनाया तो गया किंतु वे अपनी अनाज्ञाकारिता के कारण प्रवेश न कर पाए, 7 परमेश्वर ने एक दिन दोबारा तय किया, “आज.” इसी दिन के विषय में एक लंबे समय के बाद उन्होंने दावीद के मुख से यह कहा था, ठीक जैसा कि पहले भी कहा था:
“यदि आज तुम उनकी आवाज सुनो
तो अपने हृदय कठोर न कर लेना.”§ 4:7 स्तोत्र 95:7, 8
8 यदि उन्हें यहोशू द्वारा विश्राम प्रदान किया गया होता तो परमेश्वर इसके बाद एक अन्य दिन का वर्णन न करते. 9 इसलिये परमेश्वर की प्रजा के लिए अब भी एक शब्बाथ का विश्राम तय है; 10 क्योंकि वह, जो परमेश्वर के विश्राम में प्रवेश करता है, अपने कामों से भी विश्राम करता है, जिस प्रकार स्वयं परमेश्वर ने विश्राम किया था. 11 इसलिये हम उस विश्राम में प्रवेश का पूरे साहस से प्रयास करें, कि किसी को भी उसी प्रकार अनाज्ञाकारिता का दंड भोगना न पड़े.
12 परमेश्वर का वचन जीवित, सक्रिय तथा किसी भी दोधारी तलवार से कहीं अधिक धारदार है, जो हमारे भीतर में प्रवेश कर हमारी आत्मा, प्राण, जोड़ों तथा मज्जा को भेद देता है. यह हमारे हृदय के उद्धेश्यों तथा विचारों को पहचानने में सक्षम है. 13 जिन्हें हमें हिसाब देना है, उनकी दृष्टि से कोई भी प्राणी छिपा नहीं है—सभी वस्तुएं उनके सामने साफ़ और खुली हुई हैं.
महापुरोहित परमेश्वर-पुत्र: मसीह येशु
14 इसलिये कि वह, जो आकाशमंडल में से होकर पहुंच गए, जब वह महापुरोहित—परमेश्वर-पुत्र, मसीह येशु—हमारी ओर हैं; हम अपने विश्वास में स्थिर बने रहें. 15 वह ऐसे महापुरोहित नहीं हैं, जो हमारी दुर्बलताओं में सहानुभूति न रख सकें परंतु वह ऐसे महापुरोहित हैं, जो प्रत्येक पक्ष में हमारे समान ही परखे गए फिर भी निष्पाप ही रहे; 16 इसलिये हम अनुग्रह के सिंहासन के सामने निडर होकर जाएं, कि हमें ज़रूरत के अवसर पर कृपा तथा अनुग्रह प्राप्त हो.