स्तोत्र 28
दावीद की रचना
1 याहवेह, मैं आपको पुकार रहा हूं;
आप मेरी सुरक्षा की चट्टान हैं,
मेरी अनसुनी न कीजिए.
कहीं ऐसा न हो कि आपके प्रत्युत्तर न देने पर मैं उनके समान हो जाऊं,
जो मृतक लोक में उतर रहे हैं.
2 जब मैं परम पवित्र स्थान
की ओर अपने हाथ उठाऊं,
जब मैं सहायता के लिए आपको पुकारूं,
तो मेरी पुकार सुन लीजिए.
3 दुष्टों के लिए निर्धारित दंड में मुझे सम्मिलित न कीजिए,
वे अधर्म करते रहते हैं,
पड़ोसियों के साथ उनका वार्तालाप अत्यंत मेल-मिलाप का होता है
किंतु उनके हृदय में उनके लिए बुराई की युक्तियां ही उपजती रहती हैं.
4 उन्हें उनके आचरण के अनुकूल ही प्रतिफल दीजिए,
उन्होंने जो कुछ किया है बुराई की है;
उन्हें उनके सभी कार्यों के अनुरूप दंड दीजिए,
उन्हें वही दंड दीजिए, जिसके वे अधिकारी हैं.
5 क्योंकि याहवेह के महाकार्य का,
याहवेह की कृतियों के लिए ही, उनकी दृष्टि में कोई महत्व नहीं!
याहवेह उन्हें नष्ट कर देंगे,
इस रीति से कि वे कभी उठ न पाएंगे.
6 याहवेह का स्तवन हो,
उन्होंने सहायता के लिए मेरी पुकार सुन ली है.
7 याहवेह मेरा बल एवं मेरी ढाल हैं;
उन पर ही मेरा भरोसा है, उन्होंने मेरी सहायता की है.
मेरा हृदय हर्षोल्लास में उछल रहा है,
मैं अपने गीत के द्वारा उनके लिए आभार व्यक्त करूंगा.
8 याहवेह अपनी प्रजा का बल हैं,
अपने अभिषिक्त के लिए उद्धार का दृढ़ गढ़ हैं.
9 आप अपनी मीरास को उद्धार प्रदान कीजिए और उसे आशीष दीजिए;
उनके चरवाहा होकर उन्हें सदा-सर्वदा संभालते रहिए.