कुरिन्थियों के नाम पौलुस रसूल का दूसरा ख़त
मुसन्निफ़ की पहचान
1 पौलूस ने अपनी ज़िन्दगी की कमज़ोर और ग़ैर महफ़ूज़ हालत में इस ख़त को लिखा। उस ने जान लिया था कि कुरिन्थ की कलीसिया कश्मकश से गुज़र रही है। तब उस ने यह क़दम उठाया कि मक़ामी ईमान्दारों की कलीसिया के इतिहाद की मुहाफ़िज़त की जाए। जब पौलूस ने इस ख़त को लिखा तो कुरिन्थ के ईमान्दारों के लिए मुहब्बत रखने के सबब से मुसीबत और जिस्मानी तकलीफ़ें उठाईं। मुसीबतें आदमी के हिस्से में उस की कम्ज़ोरियों को ज़ाहिर करते हैं मगर आसूदगी ख़ुदा के हिस्से में। चुनांचि वह कहता है कि ख़ुदा ने मुझ से कहा मेरा फ़ज़ल तेरे लिए काफ़ी है क्योंकि मेरी क़ुदरत तेरी कम्ज़ोरी में पूरी होती है। (2 कुरिन्थियों 12:7 — 10) इस ख़त में पौलूस पुर जोश तरीक़े से अपनी खि़दमत और रसूल होने के इख़्तियार की हिमायत करता है। वह इस ख़त को इस सच्चई की बिना पर दुबारा तौसीक़ करते हुए शुरू करता है कि वह ख़ुदा की मर्ज़ी से मसीह येसू का रसूल है। (2 कुरिन्थियों 1:1) पौलूस के ज़रिए से यह ख़त रिसालत और मसीही ईमान की बाबत बहुत कुछ ज़ाहिर करती है।
लिखे जाने की तारीख़ और जगह
इस के लिखे जाने की तारीख़ तक़रीबन 55 - 56 ईस्वी के बीच है।
कुरिन्थियों के नाम पौलूस रसूल का यह ख़त मकिदुनिया से लिखा गया था।
क़बूल कुनिन्दा पाने वाले
यह ख़त ख़ुदा की कलीसिया जो कुरिन्थ और अखि़या में थी उन के लिये लिखा गया था। अखि़या रोम का एक रियासत था जिस का पाय — तख़्त कुरिन्थ था।
असल मक़सूद
इस ख़त को लिखते वक़्त पौलूस के दिमाग़ में कई एक ख़ुशी और तसल्ली की बातें थीं जिन्हें वह ज़ाहिर करना चाहता था इस लिए कि कुरिन्थियों ने पौलूस की इस दर्द भरे ख़त का बड़े ही लुत्फ़ — ओ — करम से जवाब दिया था; (1:3 — 4; 7:8 — 9; 12:13) कि वह लोग मा‘लूम करें कि पौलूस ने आसिया की रियासत में कितनी शिद्दत से ख़ुश ख़बरी की मनादी की ख़ातिर तकलीफ़ें उठाईं। (1:8 — 11) उन से दरख़्वास्त करने के लिए कि सदमा पहुंचाने वालों को मुआफ़ कर दें (2; 5 — 11) उन्हें यह ख़बरदार करने के लिए कि बे — ईमान के साथ ना हम्वार जुए में न जुतें (6:14; 7:1) सच्ची मसीही खि़दमत गुज़ारी की आला बुलाहट की फ़ितरत और सीरत को समझाने के लिए (2:14 — 7:4) कुरिन्थ के लोगों को खै़रात और हदिया देने के फ़ज़ल की बाबत ता‘लीम देने के लिए और यह यक़ीन दिलाने के लिए कि उन्होंने यरूशलेम के ग़रीब मसीहियों के लिए ख़ैराती पूंजी पूरा किया है या नहीं। (2 कुरिन्थियों) (बाब 8-9)।
मौज़’अ
पौलूस अपनी रिसालत का बचाव करता है।
बैरूनी ख़ाका
1. पौलस का अपनी खि़दमत की बाबत समझाना — 1:1-7:16
2. यरूशलेम के ग़रीब मसीहियों के लिए चन्दा जमा करना — 8:1-9:15
3. पौलूस का अपने इख़्तियार का बचाव करना — 10:1-13:10
4. ख़ुदा — ए — तस्लीस के बर्कत के कलिमात के साथ ख़ात्मा — 13:11-14
1
पौलुस की तरफ़ से सलाम
1 पौलुस की तरफ़ जो ख़ुदा की मर्ज़ी से मसीह ईसा का रसूल है और भाई तीमुथियुस की तरफ़ से ख़ुदा की उस कलीसिया के नाम जो कुरिन्थुस शहर में है और तमाम अख़िया के सब मुक़द्दसों के नाम पौलुस का ख़त। 2 हमारे बाप ख़ुदा और ख़ुदावन्द ईसा मसीह की तरफ़ से तुम्हें फ़ज़ल और इत्मीनान हासिल होता रहे; आमीन।
3 हमारे ख़ुदावन्द ईसा मसीह के ख़ुदा और बाप की हम्द हो जो रहमतों का बाप और हर तरह की तसल्ली का ख़ुदा है। 4 वो हमारी सब मुसीबतों में हम को तसल्ली देता है; ताकि हम उस तसल्ली की वजह से जो ख़ुदा हमें बख़्शता है उनको भी तसल्ली दे सकें जो किसी तरह की मुसीबत में हैं।
5 क्यूँकि जिस तरह मसीह के दु:ख हम को ज़्यादा पहुँचते हैं; उसी तरह हमारी तसल्ली भी मसीह के वसीले से ज़्यादा होती है। 6 अगर हम मुसीबत उठाते हैं तो तुम्हारी तसल्ली और नजात के वास्ते और अगर तसल्ली पाते हैं तो तुम्हारी तसल्ली के वास्ते; जिसकी तासीर से तुम सब के साथ उन दुखों को बर्दाश्त कर लेते हो; जो हम भी सहते हैं। 7 और हमारी उम्मीद तुम्हारे बारे में मज़बूत है; क्यूँकि हम जानते हैं कि जिस तरह तुम दु:खों में शरीक हो उसी तरह तसल्ली में भी हो।
8 ऐ, भाइयों! हम नहीं चाहते कि तुम उस मुसीबत से ना वाक़िफ़ रहो जो आसिया में हम पर पड़ी कि हम हद से ज़्यादा और ताक़त से बाहर पस्त हो गए; यहाँ तक कि हम ने ज़िन्दगी से भी हाथ धो लिए। 9 बल्कि अपने ऊपर मौत के हुक्म का यक़ीन कर चुके थे ताकि अपना भरोसा न रख्खें बल्कि ख़ुदा का जो मुर्दों को जिलाता है। 10 चुनाँचे उसी ने हम को ऐसी बड़ी हलाकत से छुड़ाया और छुड़ाएगा; और हम को उसी से ये उम्मीद है कि आगे को भी छुड़ाता रहेगा।
11 अगर तुम भी मिलकर दुआ से हमारी मदद करोगे ताकि जो नेअ'मत हम को बहुत लोगों के वसीले से मिली उसका शुक्र भी बहुत से लोग हमारी तरफ़ से करें।
12 क्यूँकि हम को अपने दिल की इस गवाही पर फ़ख़्र है कि हमारा चाल चलन दुनिया में और ख़ासकर तुम में जिस्मानी हिक्मत के साथ नहीं बल्कि ख़ुदा के फ़ज़ल के साथ ऐसी पाकीज़गी और सफ़ाई के साथ रहा जो ख़ुदा के लायक़ है। 13 हम और बातें तुम्हें नहीं लिखते सिवा उन के जिन्हें तुम पढ़ते या मानते हो, और मुझे उम्मीद है कि आख़िर तक मानते रहोगे। 14 चुनाँचे तुम में से कितनों ही ने मान भी लिया है कि हम तुम्हारा फ़ख़्र हैं; जिस तरह हमारे ख़ुदावन्द ईसा के दिन तुम भी हमारा फ़ख़्र रहोगे।
15 और इसी भरोसे पर मैंने ये इरादा किया था, कि पहले तुम्हारे पास आऊँ; ताकि तुम्हें एक और नेअ'मत मिले। 16 और तुम्हारे शहर से होता हुआ मकिदुनिया सूबे को जाऊँ और मकिदुनिया से फिर तुम्हारे पास आऊँ, और तुम मुझे यहूदिया की तरफ़ रवाना कर दो।
17 पस मैंने जो इरादा किया था शोखमिज़ाजी से किया था? या जिन बातों का इरादा करता हूँ क्या जिस्मानी तौर पर करता हूँ कि हाँ हाँ भी करूँ और नहीं नहीं भी करूँ? 18 ख़ुदा की सच्चाई की क़सम कि हमारे उस कलाम में जो तुम से किया जाता है हाँ और नहीं दोनों पाई नहीं जाती।
19 क्यूँकि ख़ुदा का बेटा ईसा मसीह जिसकी मनादी हम ने या'नी मैंने और सिलवानुस और तीमुथियुस ने तुम में की उस में हाँ और नहीं दोनों न थीं बल्कि उस में हाँ ही हाँ हुई। 20 क्यूँकि ख़ुदा के जितने वा'दे हैं वो सब उस में हाँ के साथ हैं। इसी लिए उसके ज़रिए से आमीन भी हुई; ताकि हमारे वसीले से ख़ुदा का जलाल ज़ाहिर हो।
21 और जो हम को तुम्हारे साथ मसीह में क़ाईम करता है और जिस ने हम को मसह किया वो ख़ुदा है। 22 जिसने हम पर मुहर भी की और पेशगी में रूह को हमारे दिलों में दिया।
23 मैं ख़ुदा को गवाह करता हूँ कि मैं अब तक कुरिन्थुस में इस वास्ते नहीं आया कि मुझे तुम पर रहम आता है। 24 ये नहीं कि हम ईमान के बारे में तुम पर हुकूमत जताते हैं बल्कि ख़ुशी में तुम्हारे मददगार हैं क्यूँकि तुम ईमान ही से क़ाईम रहते हो।