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फ़रमाँबरदारी की अशद्द ज़रूरत
ऐ इसराईल, अब वह तमाम अहकाम ध्यान से सुन ले जो मैं तुम्हें सिखाता हूँ। उन पर अमल करो ताकि तुम ज़िंदा रहो और जाकर उस मुल्क पर क़ब्ज़ा करो जो रब तुम्हारे बापदादा का ख़ुदा तुम्हें देनेवाला है। जो अहकाम मैं तुम्हें सिखाता हूँ उनमें न किसी बात का इज़ाफ़ा करो और न उनसे कोई बात निकालो। रब अपने ख़ुदा के तमाम अहकाम पर अमल करो जो मैंने तुम्हें दिए हैं। तुमने ख़ुद देखा है कि रब ने बाल-फ़ग़ूर से क्या कुछ किया। वहाँ रब तेरे ख़ुदा ने हर एक को हलाक कर डाला जिसने फ़ग़ूर के बाल देवता की पूजा की। लेकिन तुममें से जितने रब अपने ख़ुदा के साथ लिपटे रहे वह सब आज तक ज़िंदा हैं।
मैंने तुम्हें तमाम अहकाम यों सिखा दिए हैं जिस तरह रब मेरे ख़ुदा ने मुझे बताया। क्योंकि लाज़िम है कि तुम उस मुल्क में इनके ताबे रहो जिस पर तुम क़ब्ज़ा करनेवाले हो। इन्हें मानो और इन पर अमल करो तो दूसरी क़ौमों को तुम्हारी दानिशमंदी और समझ नज़र आएगी। फिर वह इन तमाम अहकाम के बारे में सुनकर कहेंगी, “वाह, यह अज़ीम क़ौम कैसी दानिशमंद और समझदार है!” कौन-सी अज़ीम क़ौम के माबूद इतने क़रीब हैं जितना हमारा ख़ुदा हमारे क़रीब है? जब भी हम मदद के लिए पुकारते हैं तो रब हमारा ख़ुदा मौजूद होता है। कौन-सी अज़ीम क़ौम के पास ऐसे मुंसिफ़ाना अहकाम और हिदायात हैं जैसे मैं आज तुम्हें पूरी शरीअत सुनाकर पेश कर रहा हूँ?
लेकिन ख़बरदार, एहतियात करना और वह तमाम बातें न भूलना जो तेरी आँखों ने देखी हैं। वह उम्र-भर तेरे दिल में से मिट न जाएँ बल्कि उन्हें अपने बच्चों और पोते-पोतियों को भी बताते रहना। 10 वह दिन याद कर जब तू होरिब यानी सीना पहाड़ पर रब अपने ख़ुदा के सामने हाज़िर था और उसने मुझे बताया, “क़ौम को यहाँ मेरे पास जमा कर ताकि मैं उनसे बात करूँ और वह उम्र-भर मेरा ख़ौफ़ मानें और अपने बच्चों को मेरी बातें सिखाते रहें।”
11 उस वक़्त तुम क़रीब आकर पहाड़ के दामन में खड़े हुए। वह जल रहा था, और उस की आग आसमान तक भड़क रही थी जबकि काले बादलों और गहरे अंधेरे ने उसे नज़रों से छुपा दिया। 12 फिर रब आग में से तुमसे हमकलाम हुआ। तुमने उस की बातें सुनीं लेकिन उस की कोई शक्ल न देखी। सिर्फ़ उस की आवाज़ सुनाई दी। 13 उसने तुम्हारे लिए अपने अहद यानी उन 10 अहकाम का एलान किया और हुक्म दिया कि इन पर अमल करो। फिर उसने उन्हें पत्थर की दो तख़्तियों पर लिख दिया। 14 रब ने मुझे हिदायत की, “उन्हें वह तमाम अहकाम सिखा जिनके मुताबिक़ उन्हें चलना होगा जब वह दरियाए-यरदन को पार करके कनान पर क़ब्ज़ा करेंगे।”
बुतपरस्ती के बारे में आगाही
15 जब रब होरिब यानी सीना पहाड़ पर तुमसे हमकलाम हुआ तो तुमने उस की कोई शक्ल न देखी। चुनाँचे ख़बरदार रहो 16 कि तुम ग़लत काम करके अपने लिए किसी भी शक्ल का बुत न बनाओ। न मर्द, औरत, 17 ज़मीन पर चलनेवाले जानवर, परिंदे, 18 रेंगनेवाले जानवर या मछली का बुत बनाओ। 19 जब तू आसमान की तरफ़ नज़र उठाकर आसमान का पूरा लशकर देखे तो सूरज, चाँद और सितारों की परस्तिश और ख़िदमत करने की आज़माइश में न पड़ना। रब तेरे ख़ुदा ने इन चीज़ों को बाक़ी तमाम क़ौमों को अता किया है, 20 लेकिन तुम्हें उसने मिसर के भड़कते भट्टे से निकाला है ताकि तुम उस की अपनी क़ौम और उस की मीरास बन जाओ। और आज ऐसा ही हुआ है।
21 तुम्हारे सबब से रब ने मुझसे नाराज़ होकर क़सम खाई कि तू दरियाए-यरदन को पार करके उस अच्छे मुल्क में दाख़िल नहीं होगा जो रब तेरा ख़ुदा तुझे मीरास में देनेवाला है। 22 मैं यहीं इसी मुल्क में मर जाऊँगा और दरियाए-यरदन को पार नहीं करूँगा। लेकिन तुम दरिया को पार करके उस बेहतरीन मुल्क पर क़ब्ज़ा करोगे। 23 हर सूरत में वह अहद याद रखना जो रब तुम्हारे ख़ुदा ने तुम्हारे साथ बाँधा है। अपने लिए किसी भी चीज़ की मूरत न बनाना। यह रब का हुक्म है, 24 क्योंकि रब तेरा ख़ुदा भस्म कर देनेवाली आग है, वह ग़यूर ख़ुदा है।
25 तुम मुल्क में जाकर वहाँ रहोगे। तुम्हारे बच्चे और पोते-नवासे उसमें पैदा हो जाएंगे। जब इस तरह बहुत वक़्त गुज़र जाएगा तो ख़तरा है कि तुम ग़लत काम करके किसी चीज़ की मूरत बनाओ। ऐसा कभी न करना। यह रब तुम्हारे ख़ुदा की नज़र में बुरा है और उसे ग़ुस्सा दिलाएगा। 26 आज आसमान और ज़मीन मेरे गवाह हैं कि अगर तुम ऐसा करो तो जल्दी से उस मुल्क में से मिट जाओगे जिस पर तुम दरियाए-यरदन को पार करके क़ब्ज़ा करोगे। तुम देर तक वहाँ जीते नहीं रहोगे बल्कि पूरे तौर पर हलाक हो जाओगे। 27 रब तुम्हें मुल्क से निकालकर मुख़्तलिफ़ क़ौमों में मुंतशिर कर देगा, और वहाँ सिर्फ़ थोड़े ही अफ़राद बचे रहेंगे। 28 वहाँ तुम इनसान के हाथों से बने हुए लकड़ी और पत्थर के बुतों की ख़िदमत करोगे, जो न देख सकते, न सुन सकते, न खा सकते और न सूँघ सकते हैं।
29 वहीं तू रब अपने ख़ुदा को तलाश करेगा, और अगर उसे पूरे दिलो-जान से ढूँडे तो वह तुझे मिल भी जाएगा। 30 जब तू इस तकलीफ़ में मुब्तला होगा और यह सारा कुछ तुझ पर से गुज़रेगा फिर आख़िरकार रब अपने ख़ुदा की तरफ़ रुजू करके उस की सुनेगा। 31 क्योंकि रब तेरा ख़ुदा रहीम ख़ुदा है। वह तुझे न तर्क करेगा और न बरबाद करेगा। वह उस अहद को नहीं भूलेगा जो उसने क़सम खाकर तेरे बापदादा से बाँधा था।
रब ही हमारा ख़ुदा है
32 दुनिया में इनसान की तख़लीक़ से लेकर आज तक माज़ी की तफ़तीश कर। आसमान के एक सिरे से दूसरे सिरे तक खोज लगा। क्या इससे पहले कभी इस तरह का मोजिज़ाना काम हुआ है? क्या किसी ने इससे पहले इस क़िस्म के अज़ीम काम की ख़बर सुनी है? 33 तूने आग में से बोलती हुई अल्लाह की आवाज़ सुनी तो भी जीता बचा! क्या किसी और क़ौम के साथ ऐसा हुआ है? 34 क्या किसी और माबूद ने कभी जुर्रत की है कि रब की तरह पूरी क़ौम को एक मुल्क से निकालकर अपनी मिलकियत बनाया हो? उसने ऐसा ही तुम्हारे साथ किया। उसने तुम्हारे देखते देखते मिसरियों को आज़माया, उन्हें बड़े मोजिज़े दिखाए, उनके साथ जंग की, अपनी बड़ी क़ुदरत और इख़्तियार का इज़हार किया और हौलनाक कामों से उन पर ग़ालिब आ गया।
35 तुझे यह सब कुछ दिखाया गया ताकि तू जान ले कि रब ख़ुदा है। उसके सिवा कोई और नहीं है। 36 उसने तुझे नसीहत देने के लिए आसमान से अपनी आवाज़ सुनाई। ज़मीन पर उसने तुझे अपनी अज़ीम आग दिखाई जिसमें से तूने उस की बातें सुनीं। 37 उसे तेरे बापदादा से प्यार था, और उसने तुझे जो उनकी औलाद हैं चुन लिया। इसलिए वह ख़ुद हाज़िर होकर अपनी अज़ीम क़ुदरत से तुझे मिसर से निकाल लाया। 38 उसने तेरे आगे से तुझसे ज़्यादा बड़ी और ताक़तवर क़ौमें निकाल दीं ताकि तुझे उनका मुल्क मीरास में मिल जाए। आज ऐसा ही हो रहा है।
39 चुनाँचे आज जान ले और ज़हन में रख कि रब आसमान और ज़मीन का ख़ुदा है। कोई और माबूद नहीं है। 40 उसके अहकाम पर अमल कर जो मैं तुझे आज सुना रहा हूँ। फिर तू और तेरी औलाद कामयाब होंगे, और तू देर तक उस मुल्क में जीता रहेगा जो रब तुझे हमेशा के लिए दे रहा है।
यरदन के मशरिक़ में पनाह के शहर
41 यह कहकर मूसा ने दरियाए-यरदन के मशरिक़ में पनाह के तीन शहर चुन लिए। 42 उनमें वह शख़्स पनाह ले सकता था जिसने दुश्मनी की बिना पर नहीं बल्कि ग़ैरइरादी तौर पर किसी को जान से मार दिया था। ऐसे शहर में पनाह लेने के सबब से उसे बदले में क़त्ल नहीं किया जा सकता था। 43 इसके लिए रूबिन के क़बीले के लिए मैदाने-मुरतफ़ा का शहर बसर, जद के क़बीले के लिए जिलियाद का शहर रामात और मनस्सी के क़बीले के लिए बसन का शहर जौलान चुना गया।
शरीअत का पेशलफ़्ज़
44 दर्जे-ज़ैल वह शरीअत है जो मूसा ने इसराईलियों को पेश की। 45 मूसा ने यह अहकाम और हिदायात उस वक़्त पेश कीं जब वह मिसर से निकल कर 46 दरियाए-यरदन के मशरिक़ी किनारे पर थे। बैत-फ़ग़ूर उनके मुक़ाबिल था, और वह अमोरी बादशाह सीहोन के मुल्क में ख़ैमाज़न थे। सीहोन की रिहाइश हसबोन में थी और उसे इसराईलियों से शिकस्त हुई थी जब वह मूसा की राहनुमाई में मिसर से निकल आए थे। 47 उसके मुल्क पर क़ब्ज़ा करके उन्होंने बसन के मुल्क पर भी फ़तह पाई थी जिसका बादशाह ओज था। इन दोनों अमोरी बादशाहों का यह पूरा इलाक़ा उनके हाथ में आ गया था। यह इलाक़ा दरियाए-यरदन के मशरिक़ में था। 48 उस की जुनूबी सरहद दरियाए-अरनोन के किनारे पर वाक़े शहर अरोईर थी जबकि उस की शिमाली सरहद सिरयून यानी हरमून पहाड़ थी। 49 दरियाए-यरदन का पूरा मशरिक़ी किनारा पिसगा के पहाड़ी सिलसिले के दामन में वाक़े बहीराए-मुरदार तक उसमें शामिल था।