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याक़ूब एसौ से मिलने के लिए तैयार हो जाता है
याक़ूब ने भी अपना सफ़र जारी रखा। रास्ते में अल्लाह के फ़रिश्ते उससे मिले। उन्हें देखकर उसने कहा, “यह अल्लाह की लशकरगाह है।” उसने उस मक़ाम का नाम महनायम यानी ‘दो लशकरगाहें’ रखा।
याक़ूब ने अपने भाई एसौ के पास अपने आगे आगे क़ासिद भेजे। एसौ सईर यानी अदोम के मुल्क में आबाद था। उन्हें एसौ को बताना था, “आपका ख़ादिम याक़ूब आपको इत्तला देता है कि मैं परदेस में जाकर अब तक लाबन का मेहमान रहा हूँ। वहाँ मुझे बैल, गधे, भेड़-बकरियाँ, ग़ुलाम और लौंडियाँ हासिल हुए हैं। अब मैं अपने मालिक को इत्तला दे रहा हूँ कि वापस आ गया हूँ और आपकी नज़रे-करम का ख़ाहिशमंद हूँ।”
जब क़ासिद वापस आए तो उन्होंने कहा, “हम आपके भाई एसौ के पास गए, और वह 400 आदमी साथ लेकर आपसे मिलने आ रहा है।”
याक़ूब घबराकर बहुत परेशान हुआ। उसने अपने साथ के तमाम लोगों, भेड़-बकरियों, गाय-बैलों और ऊँटों को दो गुरोहों में तक़सीम किया। ख़याल यह था कि अगर एसौ आकर एक गुरोह पर हमला करे तो बाक़ी गुरोह शायद बच जाए। फिर याक़ूब ने दुआ की, “ऐ मेरे दादा इब्राहीम और मेरे बाप इसहाक़ के ख़ुदा, मेरी दुआ सुन! ऐ रब, तूने ख़ुद मुझे बताया, ‘अपने मुल्क और रिश्तेदारों के पास वापस जा, और मैं तुझे कामयाबी दूँगा।’ 10 मैं उस तमाम मेहरबानी और वफ़ादारी के लायक़ नहीं जो तूने अपने ख़ादिम को दिखाई है। जब मैंने लाबन के पास जाते वक़्त दरियाए-यरदन को पार किया तो मेरे पास सिर्फ़ यह लाठी थी, और अब मेरे पास यह दो गुरोह हैं। 11 मुझे अपने भाई एसौ से बचा, क्योंकि मुझे डर है कि वह मुझ पर हमला करके बाल-बच्चों समेत सब कुछ तबाह कर देगा। 12 तूने ख़ुद कहा था, ‘मैं तुझे कामयाबी दूँगा और तेरी औलाद इतनी बढ़ाऊँगा कि वह समुंदर की रेत की मानिंद बेशुमार होगी’।”
13 याक़ूब ने वहाँ रात गुज़ारी। फिर उसने अपने माल में से एसौ के लिए तोह्फ़े चुन लिए : 14 200 बकरियाँ, 20 बकरे, 200 भेड़ें, 20 मेंढे, 15 30 दूध देनेवाली ऊँटनियाँ बच्चों समेत, 40 गाएँ, 10 बैल, 20 गधियाँ और 10 गधे। 16 उसने उन्हें मुख़्तलिफ़ रेवड़ों में तक़सीम करके अपने मुख़्तलिफ़ नौकरों के सुपुर्द किया और उनसे कहा, “मेरे आगे आगे चलो लेकिन हर रेवड़ के दरमियान फ़ासला रखो।”
17 जो नौकर पहले रेवड़ लेकर आगे निकला उससे याक़ूब ने कहा, “मेरा भाई एसौ तुमसे मिलेगा और पूछेगा, ‘तुम्हारा मालिक कौन है? तुम कहाँ जा रहे हो? तुम्हारे सामने के जानवर किसके हैं?’ 18 जवाब में तुम्हें कहना है, ‘यह आपके ख़ादिम याक़ूब के हैं। यह तोह्फ़ा हैं जो वह अपने मालिक एसौ को भेज रहे हैं। याक़ूब हमारे पीछे पीछे आ रहे हैं’।”
19 याक़ूब ने यही हुक्म हर एक नौकर को दिया जिसे रेवड़ लेकर उसके आगे आगे जाना था। उसने कहा, “जब तुम एसौ से मिलोगे तो उससे यही कहना है। 20 तुम्हें यह भी ज़रूर कहना है, आपके ख़ादिम याक़ूब हमारे पीछे आ रहे हैं।” क्योंकि याक़ूब ने सोचा, ‘मैं इन तोह्फ़ों से उसके साथ सुलह करूँगा। फिर जब उससे मुलाक़ात होगी तो शायद वह मुझे क़बूल कर ले।’ 21 यों उसने यह तोह्फ़े अपने आगे आगे भेज दिए। लेकिन उसने ख़ुद ख़ैमागाह में रात गुज़ारी।
याक़ूब की कुश्ती
22 उस रात वह उठा और अपनी दो बीवियों, दो लौंडियों और ग्यारह बेटों को लेकर दरियाए-यब्बोक़ को वहाँ से पार किया जहाँ कम गहराई थी। 23 फिर उसने अपना सारा सामान भी वहाँ भेज दिया। 24 लेकिन वह ख़ुद अकेला ही पीछे रह गया।
उस वक़्त एक आदमी आया और पौ फटने तक उससे कुश्ती लड़ता रहा। 25 जब उसने देखा कि मैं याक़ूब पर ग़ालिब नहीं आ रहा तो उसने उसके कूल्हे को छुआ, और उसका जोड़ निकल गया। 26 आदमी ने कहा, “मुझे जाने दे, क्योंकि पौ फटनेवाली है।”
याक़ूब ने कहा, “पहले मुझे बरकत दें, फिर ही आपको जाने दूँगा।” 27 आदमी ने पूछा, “तेरा क्या नाम है?” उसने जवाब दिया, “याक़ूब।” 28 आदमी ने कहा, “अब से तेरा नाम याक़ूब नहीं बल्कि इसराईल यानी ‘वह अल्लाह से लड़ता है’ होगा। क्योंकि तू अल्लाह और आदमियों के साथ लड़कर ग़ालिब आया है।”
29 याक़ूब ने कहा, “मुझे अपना नाम बताएँ।” उसने कहा, “तू क्यों मेरा नाम जानना चाहता है?” फिर उसने याक़ूब को बरकत दी।
30 याक़ूब ने कहा, “मैंने अल्लाह को रूबरू देखा तो भी बच गया हूँ।” इसलिए उसने उस मक़ाम का नाम फ़नियेल रखा। 31 याक़ूब वहाँ से चला तो सूरज तुलू हो रहा था। वह कूल्हे के सबब से लँगड़ाता रहा।
32 यही वजह है कि आज भी इसराईल की औलाद कूल्हे के जोड़ पर की नस को नहीं खाते, क्योंकि याक़ूब की इसी नस को छुआ गया था।