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बिलदद का जवाब : अपने गुनाह से तौबा कर!
1 तब बिलदद सूख़ी ने जवाब देकर कहा,
2 “तू कब तक इस क़िस्म की बातें करेगा? कब तक तेरे मुँह से आँधी के झोंके निकलेंगे? 3 क्या अल्लाह इनसाफ़ का ख़ून कर सकता, क्या क़ादिरे-मुतलक़ रास्ती को आगे पीछे कर सकता है? 4 तेरे बेटों ने उसका गुनाह किया है, इसलिए उसने उन्हें उनके जुर्म के क़ब्ज़े में छोड़ दिया। 5 अब तेरे लिए लाज़िम है कि तू अल्लाह का तालिब हो और क़ादिरे-मुतलक़ से इल्तिजा करे, 6 कि तू पाक हो और सीधी राह पर चले। फिर वह अब भी तेरी ख़ातिर जोश में आकर तेरी रास्तबाज़ी की सुकूनतगाह को बहाल करेगा। 7 तब तेरा मुस्तक़बिल निहायत अज़ीम होगा, ख़ाह तेरी इब्तिदाई हालत कितनी पस्त क्यों न हो।
8 गुज़श्ता नसल से ज़रा पूछ ले, उस पर ध्यान दे जो उनके बापदादा ने तहक़ीक़ात के बाद मालूम किया। 9 क्योंकि हम ख़ुद कल ही पैदा हुए और कुछ नहीं जानते, ज़मीन पर हमारे दिन साये जैसे आरिज़ी हैं। 10 लेकिन यह तुझे तालीम देकर बात बता सकते हैं, यह तुझे अपने दिल में जमाशुदा इल्म पेश कर सकते हैं। 11 क्या आबी नरसल वहाँ उगता है जहाँ दलदल नहीं? क्या सरकंडा वहाँ फलता-फूलता है जहाँ पानी नहीं? 12 उस की कोंपलें अभी निकल रही हैं और उसे तोड़ा नहीं गया कि अगर पानी न मिले तो बाक़ी हरियाली से पहले ही सूख जाता है। 13 यह है उनका अंजाम जो अल्लाह को भूल जाते हैं, इसी तरह बेदीन की उम्मीद जाती रहती है। 14 जिस पर वह एतमाद करता है वह निहायत ही नाज़ुक है, जिस पर उसका भरोसा है वह मकड़ी के जाले जैसा कमज़ोर है। 15 जब वह जाले पर टेक लगाए तो खड़ा नहीं रहता, जब उसे पकड़ ले तो क़ायम नहीं रहता।
16 बेदीन धूप में शादाब बेल की मानिंद है। उस की कोंपलें चारों तरफ़ फैल जाती, 17 उस की जड़ें पत्थर के ढेर पर छाकर उनमें टिक जाती हैं। 18 लेकिन अगर उसे उखाड़ा जाए तो जिस जगह पहले उग रही थी वह उसका इनकार करके कहेगी, ‘मैंने तुझे कभी देखा भी नहीं।’ 19 यह है उस की राह की नाम-निहाद ख़ुशी! जहाँ पहले था वहाँ दीगर पौदे ज़मीन से फूट निकलेंगे।
20 यक़ीनन अल्लाह बेइलज़ाम आदमी को मुस्तरद नहीं करता, यक़ीनन वह शरीर आदमी के हाथ मज़बूत नहीं करता। 21 वह एक बार फिर तुझे ऐसी ख़ुशी बख़्शेगा कि तू हँस उठेगा और शादमानी के नारे लगाएगा। 22 जो तुझसे नफ़रत करते हैं वह शर्म से मुलब्बस हो जाएंगे, और बेदीनों के ख़ैमे नेस्तो-नाबूद होंगे।”