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अल्लाह कितना अज़ीम है
1 इलीहू ने अपनी बात जारी रखी,
2 “थोड़ी देर के लिए सब्र करके मुझे इसकी तशरीह करने दें, क्योंकि मज़ीद बहुत कुछ है जो अल्लाह के हक़ में कहना है। 3 मैं दूर दूर तक फिरूँगा ताकि वह इल्म हासिल करूँ जिससे मेरे ख़ालिक़ की रास्ती साबित हो जाए। 4 यक़ीनन जो कुछ मैं कहूँगा वह फ़रेबदेह नहीं होगा। एक ऐसा आदमी आपके सामने खड़ा है जिसने ख़ुलूसदिली से अपना इल्म हासिल किया है।
5 गो अल्लाह अज़ीम क़ुदरत का मालिक है ताहम वह ख़ुलूसदिलों को रद्द नहीं करता। 6 वह बेदीन को ज़्यादा देर तक जीने नहीं देता, लेकिन मुसीबतज़दों का इनसाफ़ करता है। 7 वह अपनी आँखों को रास्तबाज़ों से नहीं फेरता बल्कि उन्हें बादशाहों के साथ तख़्तनशीन करके बुलंदियों पर सरफ़राज़ करता है।
8 फिर अगर उन्हें ज़ंजीरों में जकड़ा जाए, उन्हें मुसीबत के रस्सों में गिरिफ़्तार किया जाए 9 तो वह उन पर ज़ाहिर करता है कि उनसे क्या कुछ सरज़द हुआ है, वह उन्हें उनके जरायम पेश करके उन्हें दिखाता है कि उनका तकब्बुर का रवैया है। 10 वह उनके कानों को तरबियत के लिए खोलकर उन्हें हुक्म देता है कि अपनी नाइनसाफ़ी से बाज़ आकर वापस आओ। 11 अगर वह मानकर उस की ख़िदमत करने लगें तो फिर वह जीते-जी अपने दिन ख़ुशहाली में और अपने साल सुकून से गुज़ारेंगे। 12 लेकिन अगर न मानें तो उन्हें दरियाए-मौत को उबूर करना पड़ेगा, वह इल्म से महरूम रहकर मर जाएंगे।
13 बेदीन अपनी हरकतों से अपने आप पर इलाही ग़ज़ब लाते हैं। अल्लाह उन्हें बाँध भी ले, लेकिन वह मदद के लिए नहीं पुकारते। 14 जवानी में ही उनकी जान निकल जाती, उनकी ज़िंदगी मुक़द्दस फ़रिश्तों के हाथों ख़त्म हो जाती है। 15 लेकिन अल्लाह मुसीबतज़दा को उस की मुसीबत के ज़रीए नजात देता, उस पर होनेवाले ज़ुल्म की मारिफ़त उसका कान खोल देता है।
16 वह आपको भी मुसीबत के मुँह से निकलने की तरग़ीब दिलाकर एक ऐसी खुली जगह पर लाना चाहता है जहाँ रुकावट नहीं है, जहाँ आपकी मेज़ उम्दा खानों से भरी रहेगी। 17 लेकिन इस वक़्त आप अदालत का वह प्याला पीकर सेर हो गए हैं जो बेदीनों के नसीब में है, इस वक़्त अदालत और इनसाफ़ ने आपको अपनी सख़्त गिरिफ़्त में ले लिया है। 18 ख़बरदार कि यह बात आपको कुफ़र बकने पर न उकसाए, ऐसा न हो कि तावान की बड़ी रक़म आपको ग़लत राह पर ले जाए। 19 क्या आपकी दौलत आपका दिफ़ा करके आपको मुसीबत से बचाएगी? या क्या आपकी सिर-तोड़ कोशिशें यह सरंजाम दे सकती हैं? हरगिज़ नहीं! 20 रात की आरज़ू न करें, उस वक़्त की जब क़ौमें जहाँ भी हों नेस्तो-नाबूद हो जाती हैं। 21 ख़बरदार रहें कि नाइनसाफ़ी की तरफ़ रुजू न करें, क्योंकि आपको इसी लिए मुसीबत से आज़माया जा रहा है।
22 अल्लाह अपनी क़ुदरत में सरफ़राज़ है। कौन उस जैसा उस्ताद है? 23 किसने मुक़र्रर किया कि उसे किस राह पर चलना है? कौन कह सकता है, ‘तूने ग़लत काम किया’? कोई नहीं! 24 उसके काम की तमजीद करना न भूलें, उस सारे काम की जिसकी लोगों ने अपने गीतों में हम्दो-सना की है। 25 हर शख़्स ने यह काम देख लिया, इनसान ने दूर दूर से उसका मुलाहज़ा किया है।
26 अल्लाह अज़ीम है और हम उसे नहीं जानते, उसके सालों की तादाद मालूम नहीं कर सकते। 27 क्योंकि वह पानी के क़तरे ऊपर खींचकर धुंध से बारिश निकाल लेता है, 28 वह बारिश जो बादल ज़मीन पर बरसा देते और जिसकी बौछाड़ें इनसान पर पड़ती हैं। 29 कौन समझ सकता है कि बादल किस तरह छा जाते, कि अल्लाह के मसकन से बिजलियाँ किस तरह कड़कती हैं? 30 वह अपने इर्दगिर्द रौशनी फैलाकर समुंदर की जड़ों तक सब कुछ रौशन करता है। 31 यों वह बादलों से क़ौमों की परवरिश करता, उन्हें कसरत की ख़ुराक मुहैया करता है। 32 वह अपनी मुट्ठियों को बादल की बिजलियों से भरकर हुक्म देता है कि क्या चीज़ अपना निशाना बनाएँ। 33 उसके बादलों की गरजती आवाज़ उसके ग़ज़ब का एलान करती, नाइनसाफ़ी पर उसके शदीद क़हर को ज़ाहिर करती है।