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नहमियाह के ख़िलाफ़ साज़िश
1 संबल्लत, तूबियाह, जशम अरबी और हमारे बाक़ी दुश्मनों को पता चला कि मैंने फ़सील को तकमील तक पहुँचाया है और दीवार में कहीं भी ख़ाली जगह नज़र नहीं आती। सिर्फ़ दरवाज़ों के किवाड़ अब तक लगाए नहीं गए थे। 2 तब संबल्लत और जशम ने मुझे पैग़ाम भेजा, “हम वादीए-ओनू के शहर कफ़ीरीम में आपसे मिलना चाहते हैं।” लेकिन मुझे मालूम था कि वह मुझे नुक़सान पहुँचाना चाहते हैं। 3 इसलिए मैंने क़ासिदों के हाथ जवाब भेजा, “मैं इस वक़्त एक बड़ा काम तकमील तक पहुँचा रहा हूँ, इसलिए मैं आ नहीं सकता। अगर मैं आपसे मिलने आऊँ तो पूरा काम रुक जाएगा।”
4 चार दफ़ा उन्होंने मुझे यही पैग़ाम भेजा और हर बार मैंने वही जवाब दिया। 5 पाँचवें मरतबा जब संबल्लत ने अपने मुलाज़िम को मेरे पास भेजा तो उसके हाथ में एक खुला ख़त था। 6 ख़त में लिखा था, “पड़ोसी ममालिक में अफ़वाह फैल गई है कि आप और बाक़ी यहूदी बग़ावत की तैयारियाँ कर रहे हैं। जशम ने इस बात की तसदीक़ की है। लोग कहते हैं कि इसी वजह से आप फ़सील बना रहे हैं। इन रिपोर्टों के मुताबिक़ आप उनके बादशाह बनेंगे। 7 कहा जाता है कि आपने नबियों को मुक़र्रर किया है जो यरूशलम में एलान करें कि आप यहूदाह के बादशाह हैं। बेशक ऐसी अफ़वाहें शहनशाह तक भी पहुँचेंगी। इसलिए आएँ, हम मिलकर एक दूसरे से मशवरा करें कि क्या करना चाहिए।”
8 मैंने उसे जवाब भेजा, “जो कुछ आप कह रहे हैं वह झूट ही झूट है। कुछ नहीं हो रहा, बल्कि आपने फ़रज़ी कहानी घड़ ली है!” 9 असल में दुश्मन हमें डराना चाहते थे। उन्होंने सोचा, “अगर हम ऐसी बातें कहें तो वह हिम्मत हारकर काम से बाज़ आएँगे।” लेकिन अब मैंने ज़्यादा अज़म के साथ काम जारी रखा।
10 एक दिन मैं समायाह बिन दिलायाह बिन महेतबेल से मिलने गया जो ताला लगाकर घर में बैठा था। उसने मुझसे कहा, “आएँ, हम अल्लाह के घर में जमा हो जाएँ और दरवाज़ों को अपने पीछे बंद करके कुंडी लगाएँ। क्योंकि लोग इसी रात आपको क़त्ल करने के लिए आएँगे।”
11 मैंने एतराज़ किया, “क्या यह ठीक है कि मुझ जैसा आदमी भाग जाए? या क्या मुझ जैसा शख़्स जो इमाम नहीं है रब के घर में दाख़िल होकर ज़िंदा रह सकता है? हरगिज़ नहीं! मैं ऐसा नहीं करूँगा!” 12 मैंने जान लिया कि समायाह की यह बात अल्लाह की तरफ़ से नहीं है। संबल्लत और तूबियाह ने उसे रिश्वत दी थी, इसी लिए उसने मेरे बारे में ऐसी पेशगोई की थी। 13 इससे वह मुझे डराकर गुनाह करने पर उकसाना चाहते थे ताकि वह मेरी बदनामी करके मुझे मज़ाक़ का निशाना बना सकें।
14 ऐ मेरे ख़ुदा, तूबियाह और संबल्लत की यह बुरी हरकतें मत भूलना! नौअदियाह नबिया और बाक़ी उन नबियों को याद रख जिन्होंने मुझे डराने की कोशिश की है।
फ़सील की तकमील
15 फ़सील इलूल के महीने के 25वें दिन *2 अक्तूबर। यानी 52 दिनों में मुकम्मल हुई। 16 जब हमारे दुश्मनों को यह ख़बर मिली तो पड़ोसी ममालिक सहम गए, और वह एहसासे-कमतरी का शिकार हो गए। उन्होंने जान लिया कि अल्लाह ने ख़ुद यह काम तकमील तक पहुँचाया है।
17 उन 52 दिनों के दौरान यहूदाह के शुरफ़ा तूबियाह को ख़त भेजते रहे और उससे जवाब मिलते रहे थे। 18 असल में यहूदाह के बहुत-से लोगों ने क़सम खाकर उस की मदद करने का वादा किया था। वजह यह थी कि वह सकनियाह बिन अरख़ का दामाद था, और उसके बेटे यूहनान की शादी मसुल्लाम बिन बरकियाह की बेटी से हुई थी। 19 तूबियाह के यह मददगार मेरे सामने उसके नेक कामों की तारीफ़ करते रहे और साथ साथ मेरी हर बात उसे बताते रहे। फिर तूबियाह मुझे ख़त भेजता ताकि मैं डरकर काम से बाज़ आऊँ।