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मुसीबत में भरोसा
1 दाऊद का ज़बूर। मौसीक़ी के राहनुमा के लिए। तर्ज़ : दूर-दराज़ जज़ीरों का कबूतर। यह सुनहरा गीत उस वक़्त से मुताल्लिक़ है जब फ़िलिस्तियों ने उसे जात में पकड़ लिया।
ऐ अल्लाह, मुझ पर मेहरबानी कर! क्योंकि लोग मुझे तंग कर रहे हैं, लड़नेवाला दिन-भर मुझे सता रहा है।
2 दिन-भर मेरे दुश्मन मेरे पीछे लगे हैं, क्योंकि वह बहुत हैं और ग़ुरूर से मुझसे लड़ रहे हैं।
3 लेकिन जब ख़ौफ़ मुझे अपनी गिरिफ़्त में ले ले तो मैं तुझ पर ही भरोसा रखता हूँ।
4 अल्लाह के कलाम पर मेरा फ़ख़र है, अल्लाह पर मेरा भरोसा है। मैं डरूँगा नहीं, क्योंकि फ़ानी इनसान मुझे क्या नुक़सान पहुँचा सकता है?
5 दिन-भर वह मेरे अलफ़ाज़ को तोड़-मरोड़कर ग़लत मानी निकालते, अपने तमाम मनसूबों से मुझे ज़रर पहुँचाना चाहते हैं।
6 वह हमलाआवर होकर ताक में बैठ जाते और मेरे हर क़दम पर ग़ौर करते हैं। क्योंकि वह मुझे मार डालने पर तुले हुए हैं।
7 जो ऐसी शरीर हरकतें करते हैं, क्या उन्हें बचना चाहिए? हरगिज़ नहीं! ऐ अल्लाह, अक़वाम को ग़ुस्से में ख़ाक में मिला दे।
8 जितने भी दिन मैं बेघर फिरा हूँ उनका तूने पूरा हिसाब रखा है। ऐ अल्लाह, मेरे आँसू अपने मशकीज़े में डाल ले! क्या वह पहले से तेरी किताब में क़लमबंद नहीं हैं? ज़रूर!
9 फिर जब मैं तुझे पुकारूँगा तो मेरे दुश्मन मुझसे बाज़ आएँगे। यह मैंने जान लिया है कि अल्लाह मेरे साथ है!
10 अल्लाह के कलाम पर मेरा फ़ख़र है, रब के कलाम पर मेरा फ़ख़र है।
11 अल्लाह पर मेरा भरोसा है। मैं डरूँगा नहीं, क्योंकि फ़ानी इनसान मुझे क्या नुक़सान पहुँचा सकता है?
12 ऐ अल्लाह, तेरे हुज़ूर मैंने मन्नतें मानी हैं, और अब मैं तुझे शुक्रगुज़ारी की क़ुरबानियाँ पेश करूँगा।
13 क्योंकि तूने मेरी जान को मौत से बचाया और मेरे पाँवों को ठोकर खाने से महफ़ूज़ रखा ताकि ज़िंदगी की रौशनी में अल्लाह के हुज़ूर चलूँ।