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आज़माइश से नजात की दुआ
दाऊद का ज़बूर। तर्ज़ : सोसन के फूल। मौसीक़ी के राहनुमा के लिए।
ऐ अल्लाह, मुझे बचा! क्योंकि पानी मेरे गले तक पहुँच गया है।
मैं गहरी दलदल में धँस गया हूँ, कहीं पाँव जमाने की जगह नहीं मिलती। मैं पानी की गहराइयों में आ गया हूँ, सैलाब मुझ पर ग़ालिब आ गया है।
मैं चिल्लाते चिल्लाते थक गया हूँ। मेरा गला बैठ गया है। अपने ख़ुदा का इंतज़ार करते करते मेरी आँखें धुँधला गईं।
जो बिलावजह मुझसे कीना रखते हैं वह मेरे सर के बालों से ज़्यादा हैं, जो बेसबब मेरे दुश्मन हैं और मुझे तबाह करना चाहते हैं वह ताक़तवर हैं। जो कुछ मैंने नहीं लूटा उसे मुझसे तलब किया जाता है।
 
ऐ अल्लाह, तू मेरी हमाक़त से वाक़िफ़ है, मेरा क़ुसूर तुझसे पोशीदा नहीं है।
ऐ क़ादिरे-मुतलक़ रब्बुल-अफ़वाज, जो तेरे इंतज़ार में रहते हैं वह मेरे बाइस शरमिंदा न हों। ऐ इसराईल के ख़ुदा, मेरे बाइस तेरे तालिब की रुसवाई न हो।
क्योंकि तेरी ख़ातिर मैं शरमिंदगी बरदाश्त कर रहा हूँ, तेरी ख़ातिर मेरा चेहरा शर्मसार ही रहता है।
मैं अपने सगे भाइयों के नज़दीक अजनबी और अपनी माँ के बेटों के नज़दीक परदेसी बन गया हूँ।
क्योंकि तेरे घर की ग़ैरत मुझे खा गई है, जो तुझे गालियाँ देते हैं उनकी गालियाँ मुझ पर आ गई हैं।
10 जब मैं रोज़ा रखकर रोता था तो लोग मेरा मज़ाक़ उड़ाते थे।
11 जब मातमी लिबास पहने फिरता था तो उनके लिए इबरतअंगेज़ मिसाल बन गया।
12 जो बुज़ुर्ग शहर के दरवाज़े पर बैठे हैं वह मेरे बारे में गप्पें हाँकते हैं। शराबी मुझे अपने तंज़ भरे गीतों का निशाना बनाते हैं।
 
13 लेकिन ऐ रब, मेरी तुझसे दुआ है कि मैं तुझे दुबारा मंज़ूर हो जाऊँ। ऐ अल्लाह, अपनी अज़ीम शफ़क़त के मुताबिक़ मेरी सुन, अपनी यक़ीनी नजात के मुताबिक़ मुझे बचा।
14 मुझे दलदल से निकाल ताकि ग़रक़ न हो जाऊँ। मुझे उनसे छुटकारा दे जो मुझसे नफ़रत करते हैं। पानी की गहराइयों से मुझे बचा।
15 सैलाब मुझ पर ग़ालिब न आए, समुंदर की गहराई मुझे हड़प न कर ले, गढ़ा मेरे ऊपर अपना मुँह बंद न कर ले।
16 ऐ रब, मेरी सुन, क्योंकि तेरी शफ़क़त भली है। अपने अज़ीम रहम के मुताबिक़ मेरी तरफ़ रुजू कर।
17 अपना चेहरा अपने ख़ादिम से छुपाए न रख, क्योंकि मैं मुसीबत में हूँ। जल्दी से मेरी सुन!
18 क़रीब आकर मेरी जान का फ़िद्या दे, मेरे दुश्मनों के सबब से एवज़ाना देकर मुझे छुड़ा।
 
19 तू मेरी रुसवाई, मेरी शरमिंदगी और तज़लील से वाक़िफ़ है। तेरी आँखें मेरे तमाम दुश्मनों पर लगी रहती हैं।
20 उनके तानों से मेरा दिल टूट गया है, मैं बीमार पड़ गया हूँ। मैं हमदर्दी के इंतज़ार में रहा, लेकिन बेफ़ायदा। मैंने तवक़्क़ो की कि कोई मुझे दिलासा दे, लेकिन एक भी न मिला।
21 उन्होंने मेरी ख़ुराक में कड़वा ज़हर मिलाया, मुझे सिरका पिलाया जब प्यासा था।
 
22 उनकी मेज़ उनके लिए फंदा और उनके साथियों के लिए जाल बन जाए।
23 उनकी आँखें तारीक हो जाएँ ताकि वह देख न सकें। उनकी कमर हमेशा तक डगमगाती रहे।
24 अपना पूरा ग़ुस्सा उन पर उतार, तेरा सख़्त ग़ज़ब उन पर आ पड़े।
25 उनकी रिहाइशगाह सुनसान हो जाए और कोई उनके ख़ैमों में आबाद न हो,
26 क्योंकि जिसे तू ही ने सज़ा दी उसे वह सताते हैं, जिसे तू ही ने ज़ख़मी किया उसका दुख दूसरों को सुनाकर ख़ुश होते हैं।
27 उनके क़ुसूर का सख़्ती से हिसाब-किताब कर, वह तेरे सामने रास्तबाज़ न ठहरें।
28 उन्हें किताबे-हयात से मिटाया जाए, उनका नाम रास्तबाज़ों की फ़हरिस्त में दर्ज न हो।
 
29 हाय, मैं मुसीबत में फँसा हुआ हूँ, मुझे बहुत दर्द है। ऐ अल्लाह, तेरी नजात मुझे महफ़ूज़ रखे।
30 मैं अल्लाह के नाम की मद्हसराई करूँगा, शुक्रगुज़ारी से उस की ताज़ीम करूँगा।
31 यह रब को बैल या सींग और खुर रखनेवाले साँड से कहीं ज़्यादा पसंद आएगा।
32 हलीम अल्लाह का काम देखकर ख़ुश हो जाएंगे। ऐ अल्लाह के तालिबो, तसल्ली पाओ!
33 क्योंकि रब मुहताजों की सुनता और अपने क़ैदियों को हक़ीर नहीं जानता।
 
34 आसमानो-ज़मीन उस की तमजीद करें, समुंदर और जो कुछ उसमें हरकत करता है उस की सताइश करे।
35 क्योंकि अल्लाह सिय्यून को नजात देकर यहूदाह के शहरों को तामीर करेगा, और उसके ख़ादिम उन पर क़ब्ज़ा करके उनमें आबाद हो जाएंगे।
36 उनकी औलाद मुल्क को मीरास में पाएगी, और उसके नाम से मुहब्बत रखनेवाले उसमें बसे रहेंगे।