पाँचवीं किताब 107-15
107
नजातयाफ़्ता की शुक्रगुज़ारी
1 रब का शुक्र करो, क्योंकि वह भला है, और उस की शफ़क़त अबदी है।
2 रब के नजातयाफ़्ता जिनको उसने एवज़ाना देकर दुश्मन के क़ब्ज़े से छुड़ाया है सब यह कहें।
3 उसने उन्हें मशरिक़ से मग़रिब तक और शिमाल से जुनूब तक दीगर ममालिक से इकट्ठा किया है।
4 बाज़ रेगिस्तान में सहीह रास्ता भूलकर वीरान रास्ते पर मारे मारे फिरे, और कहीं भी आबादी न मिली।
5 भूक और प्यास के मारे उनकी जान निढाल हो गई।
6 तब उन्होंने अपनी मुसीबत में रब को पुकारा, और उसने उन्हें उनकी तमाम परेशानियों से छुटकारा दिया।
7 उसने उन्हें सहीह राह पर लाकर ऐसी आबादी तक पहुँचाया जहाँ रह सकते थे।
8 वह रब का शुक्र करें कि उसने अपनी शफ़क़त और अपने मोजिज़े इनसान पर ज़ाहिर किए हैं।
9 क्योंकि वह प्यासी जान को आसूदा करता और भूकी जान को कसरत की अच्छी चीज़ों से सेर करता है।
10 दूसरे ज़ंजीरों और मुसीबत में जकड़े हुए अंधेरे और गहरी तारीकी में बसते थे,
11 क्योंकि वह अल्लाह के फ़रमानों से सरकश हुए थे, उन्होंने अल्लाह तआला का फ़ैसला हक़ीर जाना था।
12 इसलिए अल्लाह ने उनके दिल को तकलीफ़ में मुब्तला करके पस्त कर दिया। जब वह ठोकर खाकर गिर गए और मदद करनेवाला कोई न रहा था
13 तो उन्होंने अपनी मुसीबत में रब को पुकारा, और उसने उन्हें उनकी तमाम परेशानियों से छुटकारा दिया।
14 वह उन्हें अंधेरे और गहरी तारीकी से निकाल लाया और उनकी ज़ंजीरें तोड़ डालीं।
15 वह रब का शुक्र करें कि उसने अपनी शफ़क़त और अपने मोजिज़े इनसान पर ज़ाहिर किए हैं।
16 क्योंकि उसने पीतल के दरवाज़े तोड़ डाले, लोहे के कुंडे टुकड़े टुकड़े कर दिए हैं।
17 कुछ लोग अहमक़ थे, वह अपने सरकश चाल-चलन और गुनाहों के बाइस परेशानियों में मुब्तला हुए।
18 उन्हें हर ख़ुराक से घिन आने लगी, और वह मौत के दरवाज़ों के क़रीब पहुँचे।
19 तब उन्होंने अपनी मुसीबत में रब को पुकारा, और उसने उन्हें उनकी तमाम परेशानियों से छुटकारा दिया।
20 उसने अपना कलाम भेजकर उन्हें शफ़ा दी और उन्हें मौत के गढ़े से बचाया।
21 वह रब का शुक्र करें कि उसने अपनी शफ़क़त और मोजिज़े इनसान पर ज़ाहिर किए हैं।
22 वह शुक्रगुज़ारी की क़ुरबानियाँ पेश करें और ख़ुशी के नारे लगाकर उसके कामों का चर्चा करें।
23 बाज़ बहरी जहाज़ में बैठ गए और तिजारत के सिलसिले में समुंदर पर सफ़र करते करते दूर-दराज़ इलाक़ों तक पहुँचे।
24 उन्होंने रब के अज़ीम काम और समुंदर की गहराइयों में उसके मोजिज़े देखे हैं।
25 क्योंकि रब ने हुक्म दिया तो आँधी चली जो समुंदर की मौजें बुलंदियों पर लाई।
26 वह आसमान तक चढ़ीं और गहराइयों तक उतरीं। परेशानी के बाइस मल्लाहों की हिम्मत जवाब दे गई।
27 वह शराब में धुत आदमी की तरह लड़खड़ाते और डगमगाते रहे। उनकी तमाम हिकमत नाकाम साबित हुई।
28 तब उन्होंने अपनी मुसीबत में रब को पुकारा, और उसने उन्हें तमाम परेशानियों से छुटकारा दिया।
29 उसने समुंदर को थमा दिया और ख़ामोशी फैल गई, लहरें साकित हो गईं।
30 मुसाफ़िर पुरसुकून हालात देखकर ख़ुश हुए, और अल्लाह ने उन्हें मनज़िले-मक़सूद तक पहुँचाया।
31 वह रब का शुक्र करें कि उसने अपनी शफ़क़त और अपने मोजिज़े इनसान पर ज़ाहिर किए हैं।
32 वह क़ौम की जमात में उस की ताज़ीम करें, बुज़ुर्गों की मजलिस में उस की हम्द करें।
33 कई जगहों पर वह दरियाओं को रेगिस्तान में और चश्मों को प्यासी ज़मीन में बदल देता है।
34 बाशिंदों की बुराई देखकर वह ज़रख़ेज़ ज़मीन को कल्लर के बयाबान में बदल देता है।
35 दूसरी जगहों पर वह रेगिस्तान को झील में और प्यासी ज़मीन को चश्मों में बदल देता है।
36 वहाँ वह भूकों को बसा देता है ताकि आबादियाँ क़ायम करें।
37 तब वह खेत और अंगूर के बाग़ लगाते हैं जो ख़ूब फल लाते हैं।
38 अल्लाह उन्हें बरकत देता है तो उनकी तादाद बहुत बढ़ जाती है। वह उनके रेवड़ों को भी कम होने नहीं देता।
39 जब कभी उनकी तादाद कम हो जाती और वह मुसीबत और दुख के बोझ तले ख़ाक में दब जाते हैं
40 तो वह शुरफ़ा पर अपनी हिक़ारत उंडेल देता और उन्हें रेगिस्तान में भगाकर सहीह रास्ते से दूर फिरने देता है।
41 लेकिन मुहताज को वह मुसीबत की दलदल से निकालकर सरफ़राज़ करता और उसके ख़ानदानों को भेड़-बकरियों की तरह बढ़ा देता है।
42 सीधी राह पर चलनेवाले यह देखकर ख़ुश होंगे, लेकिन बेइनसाफ़ का मुँह बंद किया जाएगा।
43 कौन दानिशमंद है? वह इस पर ध्यान दे, वह रब की मेहरबानियों पर ग़ौर करे।