ज़बूर. 83. गीत। आसफ़ का ज़बूर। ऐ अल्लाह, ख़ामोश न रह! ऐ अल्लाह, चुप न रह! देख, तेरे दुश्मन शोर मचा रहे हैं, तुझसे नफ़रत करनेवाले अपना सर तेरे ख़िलाफ़ उठा रहे हैं। तेरी क़ौम के ख़िलाफ़ वह चालाक मनसूबे बाँध रहे हैं, जो तेरी आड़ में छुप गए हैं उनके ख़िलाफ़ साज़िशें कर रहे हैं। वह कहते हैं, “आओ, हम उन्हें मिटा दें ताकि क़ौम नेस्त हो जाए और इसराईल का नामो-निशान बाक़ी न रहे।” क्योंकि वह आपस में सलाह-मशवरा करने के बाद दिली तौर पर मुत्तहिद हो गए हैं, उन्होंने तेरे ही ख़िलाफ़ अहद बाँधा है। उनमें अदोम के ख़ैमे, इसमाईली, मोआब, हाजिरी, जबाल, अम्मोन, अमालीक़, फिलिस्तिया और सूर के बाशिंदे शामिल हो गए हैं। असूर भी उनमें शरीक होकर लूत की औलाद को सहारा दे रहा है। (सिलाह) उनके साथ वही सुलूक कर जो तूने मिदियानियों से यानी क़ैसोन नदी पर सीसरा और याबीन से किया। क्योंकि वह ऐन-दोर के पास हलाक होकर खेत में गोबर बन गए। उनके शुरफ़ा के साथ वही बरताव कर जो तूने ओरेब और ज़एब से किया। उनके तमाम सरदार ज़िबह और ज़लमुन्ना की मानिंद बन जाएँ, जिन्होंने कहा, “आओ, हम अल्लाह की चरागाहों पर क़ब्ज़ा करें।” ऐ मेरे ख़ुदा, उन्हें लुढ़कबूटी और हवा में उड़ते हुए भूसे की मानिंद बना दे। जिस तरह आग पूरे जंगल में फैल जाती और एक ही शोला पहाड़ों को झुलसा देता है, उसी तरह अपनी आँधी से उनका ताक़्क़ुब कर, अपने तूफ़ान से उनको दहशतज़दा कर दे। ऐ रब, उनका मुँह काला कर ताकि वह तेरा नाम तलाश करें। वह हमेशा तक शरमिंदा और हवासबाख़्ता रहें, वह शर्मसार होकर हलाक हो जाएँ। तब ही वह जान लेंगे कि तू ही जिसका नाम रब है अल्लाह तआला यानी पूरी दुनिया का मालिक है।