ज़बूर. 85. क़ोरह की औलाद का ज़बूर। मौसीक़ी के राहनुमा के लिए। ऐ रब, पहले तूने अपने मुल्क को पसंद किया, पहले याक़ूब को बहाल किया। पहले तूने अपनी क़ौम का क़ुसूर मुआफ़ किया, उसका तमाम गुनाह ढाँप दिया। (सिलाह) जो ग़ज़ब हम पर नाज़िल हो रहा था उसका सिलसिला तूने रोक दिया, जो क़हर हमारे ख़िलाफ़ भड़क रहा था उसे छोड़ दिया। ऐ हमारी नजात के ख़ुदा, हमें दुबारा बहाल कर। हमसे नाराज़ होने से बाज़ आ। क्या तू हमेशा तक हमसे ग़ुस्से रहेगा? क्या तू अपना क़हर पुश्त-दर-पुश्त क़ायम रखेगा? क्या तू दुबारा हमारी जान को ताज़ादम नहीं करेगा ताकि तेरी क़ौम तुझसे ख़ुश हो जाए? ऐ रब, अपनी शफ़क़त हम पर ज़ाहिर कर, अपनी नजात हमें अता फ़रमा। मैं वह कुछ सुनूँगा जो ख़ुदा रब फ़रमाएगा। क्योंकि वह अपनी क़ौम और अपने ईमानदारों से सलामती का वादा करेगा, अलबत्ता लाज़िम है कि वह दुबारा हमाक़त में उलझ न जाएँ। यक़ीनन उस की नजात उनके क़रीब है जो उसका ख़ौफ़ मानते हैं ताकि जलाल हमारे मुल्क में सुकूनत करे। शफ़क़त और वफ़ादारी एक दूसरे के गले लग गए हैं, रास्ती और सलामती ने एक दूसरे को बोसा दिया है। सच्चाई ज़मीन से फूट निकलेगी और रास्ती आसमान से ज़मीन पर नज़र डालेगी। अल्लाह ज़रूर वह कुछ देगा जो अच्छा है, हमारी ज़मीन ज़रूर अपनी फ़सलें पैदा करेगी। रास्ती उसके आगे आगे चलकर उसके क़दमों के लिए रास्ता तैयार करेगी।