ज़बूर. 121. ज़ियारत का गीत। मैं अपनी आँखों को पहाड़ों की तरफ़ उठाता हूँ। मेरी मदद कहाँ से आती है? मेरी मदद रब से आती है, जो आसमानो-ज़मीन का ख़ालिक़ है। वह तेरा पाँव फिसलने नहीं देगा। तेरा मुहाफ़िज़ ऊँघने का नहीं। यक़ीनन इसराईल का मुहाफ़िज़ न ऊँघता है, न सोता है। रब तेरा मुहाफ़िज़ है, रब तेरे दहने हाथ पर सायबान है। न दिन को सूरज, न रात को चाँद तुझे ज़रर पहुँचाएगा। रब तुझे हर नुक़सान से बचाएगा, वह तेरी जान को महफ़ूज़ रखेगा। रब अब से अबद तक तेरे आने जाने की पहरादारी करेगा।