ज़बूर. 144. दाऊद का ज़बूर। रब मेरी चटान की हम्द हो, जो मेरे हाथों को लड़ने और मेरी उँगलियों को जंग करने की तरबियत देता है। वह मेरी शफ़क़त, मेरा क़िला, मेरा नजातदहिंदा और मेरी ढाल है। उसी में मैं पनाह लेता हूँ, और वही दीगर अक़वाम को मेरे ताबे कर देता है। ऐ रब, इनसान कौन है कि तू उसका ख़याल रखे? आदमज़ाद कौन है कि तू उसका लिहाज़ करे? इनसान दम-भर का ही है, उसके दिन तेज़ी से गुज़रनेवाले साये की मानिंद हैं। ऐ रब, अपने आसमान को झुकाकर उतर आ! पहाड़ों को छू ताकि वह धुआँ छोड़ें। बिजली भेजकर उन्हें मुंतशिर कर, अपने तीर चलाकर उन्हें दरहम-बरहम कर। अपना हाथ बुलंदियों से नीचे बढ़ा और मुझे छुड़ाकर पानी की गहराइयों और परदेसियों के हाथ से बचा, जिनका मुँह झूट बोलता और दहना हाथ फ़रेब देता है। ऐ अल्लाह, मैं तेरी तमजीद में नया गीत गाऊँगा, दस तारों का सितार बजाकर तेरी मद्हसराई करूँगा। क्योंकि तू बादशाहों को नजात देता और अपने ख़ादिम दाऊद को मोहलक तलवार से बचाता है। मुझे छुड़ाकर परदेसियों के हाथ से बचा, जिनका मुँह झूट बोलता और दहना हाथ फ़रेब देता है। हमारे बेटे जवानी में फलने फूलनेवाले पौदों की मानिंद हों, हमारी बेटियाँ महल को सजाने के लिए तराशे हुए कोने के सतून की मानिंद हों। हमारे गोदाम भरे रहें और हर क़िस्म की ख़ुराक मुहैया करें। हमारी भेड़-बकरियाँ हमारे मैदानों में हज़ारों बल्कि बेशुमार बच्चे जन्म दें। हमारे गाय-बैल मोटे-ताज़े हों, और न कोई ज़ाया हो जाए, न किसी को नुक़सान पहुँचे। हमारे चौकों में आहो-ज़ारी की आवाज़ सुनाई न दे। मुबारक है वह क़ौम जिस पर यह सब कुछ सादिक़ आता है, मुबारक है वह क़ौम जिसका ख़ुदा रब है!